10/05/2011

इस तेज से ही देवी के विभिन्न अंग बने


पुराणों के अनुसार असुरों के अत्याचार से तंग आकर देवताओं ने जब ब्रह्माजी से सुना कि दैत्यराज को यह वर प्राप्त है कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से होगी, तो सब देवताओं ने अपने सम्मिलित तेज से देवी के इन रूपों को प्रकट किया। विभिन्न देवताओं की देह से निकले हुए इस तेज से ही देवी के विभिन्न अंग बने।

भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ।
यमराज के तेज से मस्तक के केश।
विष्णु के तेज से भुजाएं।
चंद्रमा के तेज से स्तन।
इंद्र के तेज से कमर।
वरुण के तेज से जंघा।
पृथ्वी के तेज से नितंब।
ब्रह्मा के तेज से चरण।
सूर्य के तेज से दोनों पौरों की ऊंगलियां,
प्रजापति के तेज से सारे दांत।
अग्नि के तेज से दोनों नेत्र।
संध्या के तेज से भौंहें।
वायु के तेज से कान।
अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने हैं।

‍कहा जाता है कि फिर शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, विष्णु ने चक्र, अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, हनुमानजी ने गदा, शेषनागजी ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र ने वज्र, भगवान राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह को प्रदान किया।

इसके अतिरिक्त समुद्र ने बहुत उज्ज्वल हार, कभी न फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुंडल, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर तथा अंगूठियां भेंट कीं। इन सब वस्तुओं को देवी ने अपनी अठारह भुजाओं में धारण किया।


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