2/07/2011

दान सुभाषितावाली

 दान सुभाषितावाली
यद्ददाति विशिश्तेभ्यो  याच्चाश्नाती दिने दिने
तच्च वित्त्महम मन्ये शेषं कस्यापि रक्षति.
जो विशिष्ट सत्पात्रो को दान देता है और जो कुछ अपने भोजन आच्छादन में प्रतिदिन व्यवहृत  करता है, उसी को मै उस व्यक्ति का वास्तविक धन या संपत्ति मानता हूँ, अन्यथा शेष संपत्ति तो किसी अन्य की है, जिसकी वह रखवाली मात्र करता है.

यद्ददाति यदश्नाति तदेव धनिनो धनं
अन्ये मृतस्य क्रीडन्ति दारैरपि धनैरपि
दान में जो कुछ देता है और जितने मात्र का वह अपना धन है. अन्यथा म़र जाने पर उस व्यक्ति के स्त्री, धन आदि वस्तुओ से दूसरे लोग आनंद मनाते है. अर्थात मौज उड़ाते है, तात्पर्य यह है की सावधानीपूर्वक अपनी धन संपत्ति को दान आदि सत्कर्मो में व्यय करना  चाहिए.