7/19/2010

ऊर्ध्व भाग में नहीं बैठना चाहिय क्योकि इसका निषेध है.

यदि स्वतंत्र रूप से सप्ताह करने का समर्थ न हो,तो आठ सहायक मिलकर इस शुभ कार्य को करे. सर्व प्रथम ज्योतिषी से मुहूर्त पूछे.

सप्ताह के लिए चैत्र और पौष को छोड़कर सभी मॉस शुभ बताये गए है, मलमास, शुक्रास्त एवं चन्द्र के अस्त में, गुर्वादित्य (खरमास - मीन और धन की संक्रांति अर्थात चैत्र और पौष ) में, क्षय तिथि में सप्ताह करने का विधान नहीं है. वारो में मंगल तथा शनि त्याज्य है, नित्य कथा में द्वादशी तिथि को कथा सुनना वर्जित है, क्योकि सूतजी के देहावसान  के कारण उस दिन सूतक मनाया जाता है , सप्ताह कथा में द्वादशी तिथि वर्जित नहीं है, ऐसा व्यासजी का कथन  है, नान्दीश्राद्ध कर मंडप का निर्माण कराये. चारो दिशाओं में श्रीफल सहित कलशो की स्थापना कर, गणेश, नवग्रह, षोडश मातृका एवं पौराणिक आचारो का प्रतिदिन पूजन  करे , मंडप में शालिग्राम शिला  अवश्य रखे, एक पल सोने के विष्णु प्रतिमा  बनवाकर उसे प्रधान कलश पर स्थापित कर, पांच, सात अथवा तीन ब्रह्मण  कथा के आरम्भ से अंत तक गणेश, गायत्री एवं द्वादशाक्षर मंत्र का जप करे. जिन मासों में जिन खाद्य  वस्तुओ का त्याग बताया गया है, उनका सप्ताह में भी सेवन न कर, निमंत्रण पत्र भेजकर देश-देश से अपने कुटुम्बियो को बुलाये. यहाँ सात दिन तक ज्ञानी महात्माओं का समाज एकत्र रहेगा  , उसमे अपूर्व रसमयी श्रीमद्भागवत की कथा होगी. आप इस अमृत रस का पान करने के लिए सपरिवार अवश्य पधार, यदि अधिक अवकाश न हो तो भी कृपा कर एक किन के लिए  तो अवश्य पधारे क्योकि ऐसा अवसर बार-बार नहीं  मिलता. यहाँ सप्ताह कथा का एक-एक क्षण दुर्लभ है,

आगंतुको के लिए स्थान, भोजन आदि का समुचित प्रबंध कर, तीर्थ में वन में अथवा घर में, जहा भी विशाल स्थान हो, वही कथा का मंडप बनाये. वक्ता के लिए एक सुन्दर सिंहासन की व्यस्था करे, जो गद्दा तकिया आदि से सुसज्जित हो. यदि वक्ता उत्तरमुख बैठे तो, प्रधान श्रोता यजमान पूर्वमुख बैठे , यदि वक्ता पूर्वमुख हो, तो श्रोता उत्तरमुख बैठे, वक्ता के सामने सात पंक्तिया रहे , पहली  पंक्ति तपोलोक है, जिसमे वानप्रस्थ बैठे, तीसरी पंक्तिको जनलोक कहा है, जिसमे ब्रह्मचारी बैठे, चौथी पंक्ति महर्लोक है, जिसमे ब्रह्मिन, पाचवी पंक्ति स्वर्गलोक है, जिसमे क्षत्रिय, छठी पंक्ति भुवर्लोक जिसमे वैश्य और सातवी पंक्ति भूलोक है, जिसमे शूद्र बैठकर कथा का श्रवण करे , स्त्री  बाई तरफ बैठे और कथा के समय आने वाले श्रोता दक्षिण की ओर बैठे,

वक्ता के ऊर्ध्व  भाग में नहीं बैठना चाहिय क्योकि इसका निषेध है. इस प्रसंग में एक छोटी सी कथा है -

कथा अगले अंक में पढ़े