10/04/2011

भस्म का प्रसाद भी वितरित किया जाएगा

उज्जैन। देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन तड़के होने वाली भस्म आरती के पश्चात अब दर्शनार्थियों को भस्म का प्रसाद भी वितरित किया जाएगा।
मध्यप्रदेश धार्मिक नगरी उज्जैन में स्थित भगवान महाकालेश्वर मंदिर देश का एकमात्र ऐसा शिवालय है जहां प्रतिदिन तड़के भस्म आरती होती है और इसमें शामिल होने के लिए मंदिर प्रबंध समिति द्वारा प्रवेश पत्र जारी किए जाते हैं।
मंदिर में होने वाली विश्व प्रसिद्ध प्रातःकालीन भस्म आरती के उपरांत दर्शनार्थियों को आरती दी जाती है उसी प्रकार उस दौरान आरती के साथ ही अब भस्म प्रसाद भी दर्शनार्थियों को बांटा जाएगा।

लक्ष्मी चाहनेवाला दुर्गादेवी की पूजा करे

वेद अध्ययन  की सामर्थ्य चाहने वाला पुरुष ब्रह्मा    का यजन करे, इन्द्रिय सामर्थ्य चाहने वाला इंद्र का, प्रजा के वृद्धी चाहने वाला दक्ष का, लक्ष्मी चाहनेवाला दुर्गादेवी का, प्रभाव चाहने वाला अग्नी का, सुवर्ण तथा गौ चाहने वाला वसुओ का, आयु चाहने वाला अश्विनीकुमारो का, सौन्दर्य चाहनेवाला गन्धर्वो का तथा विद्या चाहनेवाला भगवन शिव का यजन करे. इस प्रकार नाना फलो की इच्छा से मनुष्य  नाना देवताओं का यजन करते है. 
सकाम, निष्काम, सर्वकाम अथवा मोक्ष चाहनेवाला मतिमान पुरुष तीव्र भक्तियोग द्वारा भगवान् विष्णु का यजन  करे.
इस प्रकार इंद्र आदि देवताओं का यजन करनेवाले भी शनैः-शनैः सत्संग द्वारा भगवत कथा का  श्रवण से भगवन के प्रेम लक्षणा  भक्ति प्राप्तकर मोक्ष के अधिकारी हो जाते है. जिस कथा से ज्ञान की प्राप्ति , रागद्वेशादी की निवृत्ति, मन में प्रसन्नता, विषयों से वैराग्य तथा मोक्ष प्राप्ति का उत्तम मार्ग भक्ति योग प्राप्त होता है उस भगवत्कथा में कौन विवेकी पुरुष अनुराग नहीं करेगा.
सूर्य उदय और अस्त होते हुए मनुष्यों की आयु हरण करते है किन्तु जिसने भगवत कथा  के श्रवण में एक क्षण भी व्यतीत किया उसकी  आयु व्यर्थ नष्ट नहीं होती, वह सार्थक हो जाती है. वृक्ष क्या जीते नहीं, लोहार के धौकनी क्या श्वास नहीं लेती, पशु क्या खाते-पीते तथा संतति पैदा नहीं करते ? करते ही है, किन्तु इसके कानो में भगवन  का मंगलमय नाम कभी नहीं पड़ा वह मनुष्य कुत्ते, गधे, ऊट और सूकर के सामान दो पैर वाला पशु है.
जो कान भगवन के चरित्र का शरण नहीं करते, वे चूहे के बिल के सामान है, जो जिह्वा भगवत चरित्र का गान नहीं करती, वह मेढक की जिह्वा  के सामान व्यर्थ है.
भगवान् को प्रणाम न करने वाले शिर बोझा रूप है. भगवान् की सेवा न करने वाले हाथ मृतक पुरुष के हाथो के सामान है. भगवान् के श्रीविग्रह के दर्शन न करेवाले नेत्र मयूर पिच्छ  के समान है . जो पैर भगवान् के क्षेत्र तथा तीर्थो की यात्रा नहीं करते  वे ब्रक्ष के सामान है. भगवान् की मधुर कथा सुनने से जिसके नेत्रों में अश्रु नहीं उमड़ पड़ते और शरीर में रोमांच नहीं हो आता, उसका ह्रदय पत्थर के सामान कठोर है.