1/09/2011

मन की आवाज धोखेबाज है

एक महात्मा ने बचपन में एक बात सुनायी थी-यदि तुम्हारे सामने ईश्वर प्रकट हो और वैराग्य और निवृत्ति के विरुद्ध आदेश दे तो उससे कहना की मन में वासना रही होगी  उसे पूरी करने के लिए तुम ऐसा कह रहे हो. हमको वैराग्य और निवृत्ति के विरुद्ध क्यों चलाते  हो ? हमारे राग और वासना को मिटा दो. तुम्हारा सामर्थ्य हो, तुम कैसे हो की हमारे अंतःकरण की अशुद्धि को दूर नहीं करते ? उसको पूरी करने की सलाह देते हो. ईश्वर आवे तो ऐसे बात करना.

कहो की हमारा शुद्ध अंतःकरण है यह आवाज देता है.
तो कितने संस्कार है तुम्हारे अंतःकरण में  और कितनी वासनाए छिपी हुई है- यह तुम  नहीं जानते हो. इसलिए चलना चाहिए शास्त्रानुसार, गुरु अनुसार, अपने ईशदेव की प्राप्ति के लिए एवं जिससे वासना शांत हो, उसके लिए.
इस अंतःकरण की आवाज एक दिन ऐसा धोखा देती है की आदमी कही का नहीं रहता. इल्हाम-इल्हाम जो बोलते है न वह अन्तःप्रेरणा महात्माओं को होती है, सबको नहीं और वह कभी-कभी सच्ची भी होती है.
अपनी वासना के विपरीत इल्हाम हो तो उसे मानना और अपनी वासना के अनुकूल हो तो नहीं मानना. जैसे किसी के लिए पांच रूपये  देने का मन हो और अन्तःप्रेरणा आवे की मत दो तो आप क्या समझते है ? ईश्वर ने मना कर दिया है देने से ? ईश्वर ने मना नहीं किया है, लोभ ने मना किया है. उसको आप पहचानते नहीं.
अन्तःप्रेरणा से आवाज आवे की इस लड़की से ब्याह कर लो-तो ईश्वर ने आज्ञा दी है. ईश्वर ने नहीं काम ने आज्ञा दी है. यह नहीं पहचान सकता मनुष्य.
मन के कहने पर मत चलो. यह वासना दोनों तरफ से डुबोती है.
जब हम अपनी वासना के अनुसार काम करते है और सफल हो जाते है तो अभिमान  होता है की मेरी बुद्धिमानी से काम बन गया. इससे अपने में बुद्धिमान्पने का  अहंकार आता है. यह अहंकार फिर दूसरी, फिर तीसरी वासना में लगाता है. तब मनुष्य अहंकार और वासना के चक्कर में परमार्थ  से च्युत हो जाता है और
यदि वासना के अनुसार काम न हुआ तो, विषाद होता है. विषाद होगा की हाय, हाय हमारी वासना पूरी नहीं हुई. तो अंतःकरण जो प्रसाद (निर्मलता) है वह भंग हो जाता है- अशुद्ध हो जाता है अंतःकरण.
तो अपनी वासना के अनुसार जो कर्म करते है, वे सफलता मिले तब भी बुरे रास्ते पर जाते है और विफलता मिले तब भी बुरे रस्ते पर जाते है. क्योकि अहंकार और वासना की स्रष्टि ऐसी ही है.
स्वामी अखंडानंद सरस्वतीजी महाराज के आनंद रस रत्नाकर से साभार