10/06/2011

विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं




आम आदमी के लिए विजयदशमी अब रावण-दहन की तिथि बनकर रह गई है। यद्यपि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम द्वारा रावण-वध हो चुका है, तथापि दशानन दुर्गुण बनकर हमारी दसों इंद्रियों के माध्यम से आज भी मन-रूपी सीता का हरण करने को उद्यत है। हम जब आत्मा की आवाज की अनसुनी करके तथा विवेक-रूपी लक्ष्मण के निर्देश की अनदेखी करके विषय (कामना) रूपी मृग के पीछे दौड़ते है, तब दुर्गुणरूपी दशानन इंद्रियों को वशीभूत कर चित्त-स्वरूपा सीता का हरण कर लेता है। ऐसी स्थिति में काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, ईष्र्या, द्वेष, कपट, हिंसा और असत्य रूपी दस सिरों वाले दशानन का सदाचार रूपी रामबाण से ही वध हो सकता है। प्रत्येक स्थिति में सदाचरण करने के कारण ही श्रीराम 'मर्यादा पुरुषोत्तम' कहलाए। जिस प्रकार शारदीय नवरात्र में दैवी शक्ति को जाग्रत कर श्रीरामचंद्र ने दशमी के दिन लंका पर चढ़ाई की थी, उसी तरह शारदीय साधना द्वारा जाग्रत मनोबल से हम यदि दुर्गुणरूपी रावण पर विजय प्राप्त कर लें, तो सही मायनों में विजयादशमी के महापर्व का मूल उद्देश्य पूर्ण होगा। सामाजिक दृष्टि से देखें, तो सदाचरण द्वारा ही भ्रष्टाचार रूपी रावण तथा दृढ़ इच्छाशक्ति से ही आतंकवाद रूपी मेघनाद को समाप्त किया जा सकता है। इस प्रकार विजयदशमी पर्व में निहित आध्यात्मिक संदेश को समझने की नितांत आवश्यकता है, क्योंकि तभी इस त्योहार को मनाना पूरी तरह से सार्थक सिद्ध होगा।

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