1/29/2011

जनम कोटि लगी रगरि हमारी. बरौ संभु न त रहऊ कुमारी


मनुष्य जीवन में भूले होती है. भूल होना अपराध नहीं है. भूल न सुधारना दोष है. प्रयत्नपूर्वक साधन करते रहने से मनुष्य का मन शुद्ध हो जाता है और वह अपने परमात्मस्वरूप का साक्षात्कार कर पाता है.

बचपन में पढने जाता था. गाँव का पगडण्डी का मर्ग था वर्षा में कई बार फिसलकर गिर पड़ता था. यदि गिरने पर उठकर स्कूल चला जाता तो ठीक यदि गिरनेपर घर लौटकर आता तो डांटा जाता था.

गिरना अपराध नहीं है. गिरकर न उठाना अपराध है. उठकर पीछे की ओर मुड़ना पीठ दिखाना कायरता है. उठो और बहादुरी के साथ अपने लक्ष्य की ओर उन्मुख होवो. गिरते-उठते अनेक जन्मो में हम अपने लक्ष तक पहुच ही जायेगे हम परम गति को प्राप्त करके ही रहते यह ठीक है की पूर्वाभ्यास अपनी ओर खीचता है. जैसे धारा में पड़े मनुष्य को धारा बहाती है, वैसे पूर्व जन्म के अभ्यास से व्यक्ति विवश होकर खीचा जाता है. पूर्वाभ्यास रूचि  प्रवृत्ति देता है, किन्तु प्रयत्न किया जाए तो वह रूचि प्रवृत्ति नष्ट हो जायेगी.

आप व्यापार के लिए कितना प्रयत्न करते हो? भोग के लितने व्यस्त रहते हो? वासनापूर्ति के लिए क्या-क्या नहीं करते हो? क्या समाधि, भगवत प्राप्ति या ब्रह्म ज्ञान ही सबसे गया बीता है की आप उसके लिए कोई प्रयत नहीं करना चाहते हो? यदि आप प्रयत्न करना नहीं चाहते हो, तो परमार्थ में आपकी रूचि नहीं है, जब मनुष्य के मन में इच्छा होती है. तब वह प्रयत्न अवश्य करता है. जहा-चाह, वहा राह. यदि आपके मन में परमार्थ प्राप्ति की इच्छा का उदय हो जाएगा तो कही न कही से आपको मार्ग अवश्य मिलेगा. यदि आपको राह नहीं मिलती है, तो समझना की आपकी चाह  दुर्बल है. यदि आपके मन में समाधि लगाने की या इश्वर से मिलने की या पाने स्वरुप में अवस्थित होने की चाह है तो आप प्रयत्न करो, जब मनुष्य प्रयत्न करता है तो उसके पाप छूट जाते है. उसकी वासनाए दूर हो जाती है.उसका चित्त शुद्ध हो जाता है. अपना प्रयत्न करना चाहिए. अपने  मन में यह दृढ आग्रह होना चाहिए की हम परमात्मा को अवश्य पाकर ही रहेगे.

जनम कोटि  लगी रगरि हमारी. बरौ संभु न त रहऊ   कुमारी