12/17/2010

सच क्या है यह मुझे मालूम नहीं है

जो चीज न हो उसको दिखानेवाली और जो चीज हो उसको ढकनेवाली माया ही तो है. ये जितने भी पुतले बने हुए है जैसे मनुष्य के] पशु के] पक्षी के] वृक्ष के] लता के इन सबमे पंचभूत भरे हुए है. मिटटी में पानी है, पानी में आग है, आग में वायु है और वायु में आकाश है. जब हम शांत बैठे रहते है तब आकाश में स्थित रहते है, जब हम दौड़ते है तब गति उत्पन्न होने के कारण शरीर में गरमी आती है, गर्मी से पसीना आता है और पसीना जमकर मिटटी  हो जाता है. समग्र विश्व स्रष्टि  पंचभूत में कल्पित है और बड़े भूत छोटे भूतो में कल्पित रहते है. आकाश वायु को, वायु अग्नि को और अग्नि तेज को धारण करता है. इसी प्रकार सम्पूर्ण विश्व स्रष्टि में मै भरपूर हूँ मेरे अतिरिक्त दूसरी कोई वस्तु नहीं है.

यहाँ उस व्यक्ति की बात नहीं है जो केवल यह जानना चाहता है की खाने-पहनने की, पद अधिकार की चीज क्या है ? जिसके ह्रदय में धन चले जाने से , रोग हो जाने से म्रत्यु  की कल्पना से भय लगता है और  जिसकी द्रष्टि सत्य अनुसंधान करने की ओर नहीं जाती, उसका जीवन तो नशे में बीत रहा है.

यहाँ बात की जा रही है उस एक जिज्ञासु की जो सत्य की असलियत को जानना चाहता है, जिसके ह्रदय में यह वेदना है की हाय-हाय मुझको इतना अच्छा जीवन प्राप्त हुआ, बुध्धि प्राप्त हुई लेकिन सच क्या है यह मुझे मालूम नहीं है. इस प्रकार अज्ञान की पीड़ा जिसके  ह्रदय में है, उसके लिए भगवान् ब्रह्मा जी को निमित्त बनाकर कहते है-जो चीज हर समय, हर जगह, हर रूप में मौजूद है, जिसके होने से सब मालूम पड़ता है और सबके विना भी जो मालूम पड़ता है उस चीज को तू जान ले . उसको जान लेने पर तुम देखोगे की वह वस्तु तुम्हारी आत्मा से एक है  और उसी से वही सत्य का साक्षात्कार होता है.

इस प्रकार चतुह्श्लोकी भागवत में भगवान् ने ब्रह्माजी को निमित्त बनाकर समस्त जिज्ञासुओ को अपने अनंत विस्तार का अपनी माया के खेल का, स्रष्टि की उत्पत्ति  का और जीव जगत के अंतिम ज्ञातव्य का वर्णन किया है.

जैसे चतुह्श्लोकी भागवत है वैसे ही चतुह्श्लोकी महाभारत भी है. चतुह्श्लोकी महाभारत को महाभारत की गायत्री अथवा सावित्री भी बोलते है. जिस प्रकार चार श्लोको में समग्र श्रीमद्भागवत के ज्ञान का वर्णन है उसी प्रकार चार श्लोको में महाभारत जैसे विशालकाय महाग्रंथ के प्रतिपाद्य का भी वर्णन है.
अनन्तश्री स्वामी अखंडानंद सरस्तीजी महाराज के भाग्वाताम्रत से साभार