8/05/2010

जब अश्वत्थामा मिला अभी जीवित है

जब महाभारत संग्राम में कौरव  और पांड्वो की sena  के बड़े-बड़े बीर मारे गए एवं भीम के गदा प्रहार से दुर्योधन के उरुदंड भी टूट गए तब अश्वत्थामा ने दुर्योधन के संतोषार्थ द्रौपदी के सोये हुए पुत्रो का सर कट डाला. यह देखकर विलाप करती हुई द्रौपदी  को अर्जुन ने समझाया की तू  शोक न कर, मै अश्वत्थामा का सर काटकर लाता  हूँ. ऐसा कहकर अर्जुन ने अश्वत्थामा का पीछा किया. अश्वत्थामा पीछा कर रहे अर्जुन को देखकर बहुत घबडाया और रथ पर चड़कर बड़ी तेजी से भगा.
जब अश्वत्थामा के घोड़े थक गए तब उसने अपने बचाव के लिए उपसंहार न जानते हुए भी अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया. अर्जुन ने यह देखकर अपना भी ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया. उन दोनों अस्त्रों के टकराने से महाप्रलय का सा द्रश्य उपस्थित हो गता, चारो ओर हाहाकार मच गया/ तब भगवान के आदेश से अर्जुन ने दोनों अस्त्रों को खीचकर  शांत कर दिया और अश्वत्थामा को बांधकर अपने डेरे पर ले गए.
मार्ग में भगवान ने अश्वत्थामा के  अक्षम्य अपराध को देखते हुए उसका वध कर डालने को कहा किन्तु अर्जुन ने उसे गुरुपुत्र जानकर ऐसा नहीं किया. द्रौपदी ने जब पशुतुल्य  रस्सी से बढे अश्वत्थामा को देखा तब उसे दया आ गयी. वह उसे प्रणाम कर बोली-इसे छोड़ दो यह गुरु पुत्र है. यह सर्वदा हमारे लिए वही पूज्य गुरु है जिसकी कृपा से तुमने सारी धनुर्विद्या सीखी, सम्पूर्ण अस्त्र शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया. पुत्र रूप में यह साक्षात् द्रोणाचार्य ही विद्यमान है, इसे मत मरो, छोड़ दो. मै तो पुत्र शोक से रोती ही हूँ अब इसकी माता को मेरी तरह पुत्र शोक से न रुलाओ,
द्रौपदी के इन वचनों क युधिशिथिर आदि सभी ने अनुमोदन किया किन्तु भीम को यह बात सहन न हुई. उन्होंने क्रुद्ध होकर कहा इस दुष्ट  का तो बढ़ कारण ही श्रेयस्कर है.

यह कहकर वह स्वयं अश्वत्थामा को मारने चले, इधर द्रौपदी उसे बचने चली. तब चार भुजा धारण कर भगवान ने दो भुजाओ से भीम को और दो से द्रौपदी को रोका और अर्जुन से कहा - हे अर्जुन अधम ब्रह्मण भी वधयोग्य नहीं है किन्तु आततायी शस्त्रधारी वध योग्य है, ये दोनों बाते मैंने ही कही है, इनका  यथायोग्य पालन करो और वह करो जिससे द्रौपदी को सांत्वना देते हुए तुमने जो प्रतिज्ञा की थी, वह असत्य न हो और जो भीमसेन को भी न अखरे. द्रौपदी को तथा मुझ को भी प्रिय हो. अर्जुन ने सहसा प्रभु का अभिप्राय जानकर अश्वत्थामा के केश सहित मणि खंग से काटकर निकाल ली और धक्का देकर उसे अपने शिविर से बाहर कर दिया. शास्त्र में अधम ब्रह्मण का यही वध कहा गया है, प्राणदंड नहीं, इस तरह सभी के वचनों दी रक्षा हो गयी. अश्वत्थामा के प्राण भी बच गए और बढ़ भी हो गया.

मुंडन कर देना, धन छीन  लेना तथा स्थान से निकल देना, यही अधम ब्राह्मणों का वध कहा गया है, प्राणदंड नहीं. बाद में पुत्र शोक से व्याकुल पांड्वो ने अपने मृत पुत्रो के दाहसंस्कार आदि परलौकिक कर्म किये.