2/06/2011

घर का भेदी लंका ढाए का समाधान

कुछ साहित्यकारों, निबंध लेखको ने भक्तिप्रधान ह्रदय को गौड़ समझने  के कारण "घर का भेदी लंका ढावे" यह मुहावरा ही बना दिया. यह मुहावरा प्रायः  अनभिग्य लोगो के मुख से सुना गया है. सहज आसुरी प्रवृत्ति के व्यक्ति के साथ असुर भाव हजारो वर्षों तक रहा जा सकता है किन्तु असुर भाव से रहित सज्जन धर्म में सदा निरत व्यक्ति स्वधर्म की रक्षा करता हुआ एक वर्ष भी असुरो के मध्य व्यतीत कर ले फिर भी आसुरी संगती का प्रभाव न पड़ा हो, वह व्यक्तित्व कितना प्रबल तथा धैर्य और धर्म संपन्न होगा? लगता वुद्धिमानो ने इस पर विचार ही नहीं किया.

केसरी नंदन श्री हनुमानजी को तुलसी वन तथा शंख, चक्र, गदा पद्म भगवान् के इन आयुधो से अंकित भवन को देखकर यही तो आश्चर्य हुआ -
लंका निशिचर निकर निवास, यहाँ कहा सज्जन कर वासा

धर्म-सत्कर्म विहीन राजा के राज्य में सज्जन व्यक्ति धर्म का निर्वहन नहीं कर सकता क्योकि प्रजा को राजा के अनुकूल ही रहना  पड़ेगा. अन्यथा आचरण करने पर देश निषकासन हो जाएगा, अथवा प्राण दंड का भागी होगा. धन जन बली राजा प्रजा  को दमन पूर्वक अपने स्वभाव के अनुकूल नियमो से संचालित करता है.

हिरन्य्कशिपू के स्वभाव से विपरीत पुत्र  ही क्यों न हो-जीवित नहीं रहेगा. भक्त प्रहलाद को मारने के असफल प्रयास करता हुआ वह स्वयं म्रत्यु के अधीन हो गया. यहाँ विभीषण के स्वतंत्र  रावण स्वभाव के विरुद्ध आचरण से पवन पुत्र व्यक्ति की द्रढ़ता तथा निर्भीकता का अनुमान करके विभीषण  से हठ पूर्वक परिचय बढ़ाना चाहते है.
कामी, लोभी, मोही व्यक्ति शरीर प्रेमी होता है, इसलिए स्वभाव के विपरीत परस्थितियो का दास हो जाता है. आध्यात्म ज्ञान में परिनिष्ठित  भगवद्भक्त वीर के समान ही शरीर की आहुति देने को तैयार रहता है किन्तु सद्गुणों तथा सन्मार्ग का परित्याग नहीं करता. पापी का साथ देने वाला सद्गुणी व्यक्ति कायर होता है. भक्त तथा वीर अपने तथा वीर अपने श्रेष्ठ स्वभाव का त्याग नहीं करते, भले ही शरीर त्याग ही क्यों न करना पड़े.

परधन, परनारीहर्ता, अपना ही संबंधी बंधू गुरू माता-पिता कोई भी हो उसकी सहायता करके, समाज को निर्बल बनाने वाला आपकी बुद्धि के अनुसार श्रेष्ठ है? और त्याग करने वाला भेदी ?

असद्गुनो के त्यागी स्वधर्म परिपालानकर्ता के प्रति असद्बुद्धि का आरोप लगाने वाला विवेकहीन बुद्धिमत्ता का ढोगी है. आज भी बुरे भाई का साथी अच्छा भाई नहीं देखा जाता. सत स्वभाव रहित, चरित्रहीनता का पौषक साहित्कार धर्म-मर्म से रहित  स्वशरीर पोषक अविवेकी है. शूद्र में कदाचित सरस्वती का प्रादुर्भाव हो भी जाए तो भी अच्छे बुरे की विवेकिनी बुद्धी जाग्रत नहीं होती. भगवद्भक्त सद्गुनाग्रही, सत्य के पक्षपाती  विभीषण की वृत्ति और स्वभाव को तत्कालीन ब्रह्मर्षि वाल्मीकि जी के अनुसार जानने  के लिए पढ़े-
घर का भेदी  लंका ढाए का समाधान - विभीषण शरणागति.
लेखक - व्रजपाल शुक्ल, वृन्दावन