7/26/2010

श्रीकृष्ण जब अपने धाम को चले गए तब निराश्रय धर्म किसकी शरण में गया ? कथा सार श्रीमद्भागवत-1

        श्रीमद भागवत वेदरूपी कल्पवृक्ष  का रसमय फल है. यह भक्तिरस से भरा हुआ है. यह सुमधुर फल श्रीनारायण   से ब्रह्माजी को, ब्रह्माजी से नारद को, श्रीनारादजी से सरस्वती के तट पर आसीन खिन्नचित्त श्री व्यासजी को तथा व्यासजी से योगेश्वर श्री शुकदेवजी को प्राप्त हुआ.
       श्री शुकदेवजी ने गंगातट पर आसीन महाराज परीक्षित को इसका रसास्वादन कराया. इस प्रकार शिष्य प्रशिष्य परंपरा द्वारा यह दिव्य रसमय फल जीवो के कल्याणार्थ प्रथ्वी पर प्राप्त हुआ है. आप लोग जीवन पर्यंत सर्वदा इसका पानकर माया पर विजय प्राप्त करे. इस प्रसंग में हम आप लोगो के समक्ष सूत और सौनक का संवाद उपस्थित करते है. उसे आप ध्यानपूर्वक सुने.
         एक समय नैमिशारान्य में शौन्कादी ऋषि भगवान की प्राप्ति के लिए सहस्त्र वर्षों में पूर्ण होने वाले यग्य का अनुष्ठान कर रहे थे. वे प्रातःकाल अग्नि में हवन कर भगवान के ध्यान  में निमग्न थे की व्यासजी के शिष्य परम ज्ञानी  सूत जी वहा आ पहुचे  ऋषियो ने उठकर उनका स्वागत किया और दिव्य आसन पर उन्हें बैठाकर उनसे पूछा-
(१)  मनुष्यों के लिए श्रेय का साधन क्या है ?
(२)  शास्त्रों में जो कुछ वर्णन किया गया है, उसका सार अपनी बुद्धि से निकलकर आप हमें उपदेश करे,
(३)  यह भी बतलाये की भगवान देवकी के पुत्र रूप में किस कार्य के लिए अवतीर्ण हुए थे ?
(४)  भगवान के जो-जो अद्भुत चरित्र है जिनका कवियों ने बहुधा वर्णन किया है उन्हें भी आप हमें बताये,
(५)  भगवान की अवतार सम्बन्धी जो कथाए है, उन्हें भी सुने. हम भगवान के चरित्र सुनने के लिए लालायित बैठे  है. दुस्तर संसार सगर को पार करने की इच्छा वाले हम लोगो के लिए ब्रह्मा जी ने आपको कर्णधार बनाकर यहाँ भेज दिया है.
(६)  आप यह भी बतलाये की योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण जब  अपने धाम को चले गए तब निराश्रय धर्म किसकी शरण में  गया ?
कथा सार  श्रीमद्भागवत-1