10/15/2011

स्रष्टि विषयक प्रश्न देवर्षि नारद ने ब्रह्मा से पूछा

रजा परीक्षित ने शुकदेव जी के  आत्मतत्व का निश्चय कराने वाले वचन सुनकर भगवन श्रीकृष्ण में अपनी  मति स्थिर  की और स्त्री पुत्र  आदि तथा सम्पूर्ण राज्य में चिरकाल से निरूद्ध ममता का भी परित्याग किया. जैसे आपने मुझसे पूछा है वैसे ही भगवत्कथा के प्रेमी परीक्षित ने भी शुकदेवजी से भाग्वात्सम्बंधी लीलाओं  का प्रश्न किया था.
 परीक्षित ने कहा - हे ब्रह्मन ! आपके  वचन सुनकर मुझे बड़ी शांति मिलती है और अज्ञान की निवृत्ति होती है जब आप यह बताये की भगवान् श्रष्टि, पालन और संहार कैसे करते है? इस बारे में बड़े-बड़े विद्वानों की भी मति चकरा जाती है. अतः आप हमारे इस संदेह का निवारण करे, क्योकि आप शब्द ब्रह्म तथा परब्रह्म के पूर्ण ज्ञाता है.
शूतजी कहते है - हे शौनक राजा परीक्षित का प्रश्न सुनकर शुकदेवजी ध्यानमग्न हो भगवान् का स्तवन करते हुए बोले -  हे भगवन ! आप पुराण पुरुष है. आप ही ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप धारण कर श्रष्टि , पालन और संहार करते है. सबके अन्तर्यामी होते हुए भी आपको यथार्थ रूप से कोई जान नहीं सकता. आप भक्तो का अज्ञान दूर करते है. परम हंसो को ज्ञान देते है. आपको बारम्बार नमस्कार करता हूँ.
जिनके नामो का कीर्तन, जिनके स्वरूप का स्मरण जिनकी प्रतिमाओं का दर्शन, जिनके चरणों का वंदन, जिनकी कथा का श्रवण तथा जिनके श्रीविग्रह का पूजन सम्पूर्ण लोको की पापराशी को भस्म कर डालता है उन परम मंगलमय यशोमूरती  भगवान् को मै बार-बार नमन करता हूँ. पापी पुरुष भी जिन आपके भक्तो के आश्रय से पवित्र हो जाते है, ब्रह्मा आदि देवता भी जिन आपकी मूर्ती का दर्शन कर चकित रह जाते है और उसका पार नहीं पाते, वह दुर्ज्ञेय भगवान् मुझपर प्रसन्न हो मै प्रणाम करता हूँ.
जो लक्ष्मी के स्वामी, यज्ञो के फल दाता, प्रजा के रक्षक, बुद्धि के प्रवर्तक, लोको के अधिष्ठाता, प्रथ्वी के उद्धर्ता, भक्तो  के मानदाता तथा यदुवंशियो के रक्षक है, वे ऐश्वर्यसम्पन्न भगवान् मुझ पर प्रसन्न हो. मै सर झुका कर नमन करता हूँ.
जिन भगवान् के चरण कमलो के ध्यान से निर्मल हुई बुद्धि से योगी  जन आत्मतत्व का साक्षात्कार करते है एवं अपनी रूचि के अनुसार उन्कामहत्व गान करते है वे सर्वविध संकटों से मुक्ति देनेवाले भगवान् मुझ पर प्रसन्न हो मै उनको नमन करता हूँ.
हे भगवान् ! इन आपकी ही प्रेरणा से सरस्वती ने ब्रह्मा के मुख से आविर्भूत होकर उनकी स्रष्टि विषयक स्मृति जाग्रति के, जो महाभूतो द्वारा शरीरो की रचना कर अन्तर्यामी रूप से उनमे निवास कर इन्द्रियों को शक्ति प्रदान करते है वह भगवान्  इस समय मेरी वाणी को अलंकारों से युक्त कर दे जिससे मै प्रवचन करने में समर्थ हो सकू. मै आपके चरणों में बारम्बार नमस्कार करता हूँ.
इस प्रकार १२ श्लोको से शुकदेवजी ने भगवान् की स्तुति की.. अनंतर अपने पिता श्री वेदव्यास जी को प्रणाम कर वे परीक्षित से बोले -  हे राजन ! तुमने मुझसे जो स्रष्टि विषयक प्रश्न किया था, वही देवर्षि नारद  ने  ब्रह्मा जी से पूछा था. वही प्रसंग मै आपसे कहता हूँ, ध्यान पूर्वक सुने.
...क्रमशः अगले अंक में पढ़े 

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