9/11/2011

अशांति की अवस्था में काम पैदा होता है

वास्तव में रूपये अच्छे नहीं है पर लोभ के कारण रूपये अच्छे लगते है. ऐसे ही मोह के कारण संसार, कुटुम्बी अच्छे लगते है. प्रेम के कारण भगवान् अच्छे, मीठे लगते है. गोपियों को मीराबाई को भगवान् मीठे  लगते थे. प्रेम के कारण ही मित्र से मिलने में आनंद आता है. गाय के प्रेम के कारण बछड़े को गाय के दूध से जो पुष्टि होती है वह केवल दूध से नहीं .

नाशवान मोह होता है, अविनाशी में प्रेम होता है. मूल में चीज एक है. मोह से पतन होता है.

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संसार का सुख हम छोड़ते नहीं और उसे छोड़े बिना पारमार्थिक सुख मिलता नहीं.

दुःख, अशांति की अवस्था में काम पैदा होता है. ममता रखने से वस्तुओ का सदुपयोग नहीं होता. अपना न मानने से ही वस्तुओ का सदुपयोग होता है. वस्तुओ को अपना न मानने  से और सबको अपना न  मानने से उदारता नहीं आती. वस्तु को चाहे संसार की मानो, चाहे प्रकृति मानो, चाहे भगवन की मानो. उसे अपनी मानना बेईमानी है. केवन तू और तेरा है मै और मेरा है ही नहीं.

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विचार से विवेक होता है और चिंतन से स्थिति होती है. चिंतन अभ्यास है. अभ्यास से विवेक तेज है. चिंतन मन से होता है. मन अपर प्रकृति है. शरीर को संसार से अलग मानना अविवेक है.

सत्संत सुनकर विचार नहीं करते. विचार करना वैराग्य में हेतु होता है और विचर उदय होना तत्व प्राप्ति में हेतु होता है.

अपने लिए कोई अपना नहीं है, पर सेवा के लिए सभी अपने है. चाहे किसी को अपना  मत मानो, चाहे संसार को अपना मानो दोनों का परिणाम एक होगा. अधूरी चीज ही बाधक होती है. अधूरा विधी रोगी को मार देता है. अतः या तो बिलकुल न माने या पूरा जाने. सुख लेने के लिए शरीर भी पाना नहीं है और सेवा करने के लिए पूरा संसार अपना है.

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