श्रीमदभागवत में बताया गया है की जब ह्रदय में ईश्वर विषयक चर्चा श्रवण करने की इच्छा होती है तो ईश्वर तत्क्षण ह्रदय में आकर बैठ जाता है. असल में ईश्वर की कृपा जन्म-जन्म के पुन्य सत्कर्मो का परिपाक, गुरु की कृपा, अपने ह्रदय में शुभेच्छा होवे तब वेदांत सुनने को मिलता है.
दुनिया में राज कथा, भोगकथा, जगत कथा, बहू-बेटी की बात सुनानेवाला मिलेगा, ब्रह्मविद्या को सुनानेवाल तो जल्दी मिलेगा नहीं!
लोग तो यह कहकर डराते है की वेदांत सुनोगे तो घर-गृहस्थी छूट जाएगी पर वेदांत घर गृहस्थी से कोई दुश्मनी तो है नहीं , वेदांत की अर्थात ज्ञान की दुश्मनी अगर किसी से है तो केवल अज्ञान से है, ज्ञान तुम्हारा घर, तुम्हारा परिवार, तुम्हारा धन, तुम्हारा शरीर इन सब का कुछ नहीं बिगाड़ेगा, और यह जो तुम्हारे मन में मान्यताये है, संस्कार है, छोटी-छोटी बातो में जो तुम उलझे हुए हो ये बेवकूफी की जो मान्यताये है, इनको तो जरूर मिटा देगा.
अपने नित्य शुद्ध-बुद्ध-मुक्त स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करो. अपने दुर्भाग्य को मत कोसो, अपने प्रतिबंधो के बारे में भी सोच-सोचकर निराश मत होवो. वेदांत के अधिकारी सब है-अपने घर में जाना है यह पराया घर नहीं है. यह अपना आत्मा अपना घर है, अपने पास लौटने के लिए क्या झगडा ? घर के दरवाजे पर लिखा हो बिना ईजाजत अन्दर आना मन है और घर का मालिक आ जाय तो क्या वह उसके लिए भी लिखा है ? बोले भाई, यह बात जरूर है की अपने घर में भी जब ठाकुरबाड़ी बनाते है तब जरा पाँव धोकर जाते है, अपवित्र पाँव से प्रवेश नहीं करते है, पवित्र होकर जाते है. तो वेदांत श्रवण के लिए पवित्र बुद्धि से -ईर्ष्या, द्वेष, कलुषित बुद्धि से नहीं राग-द्वेष कलुषित बुद्धि से नहीं, अहंता, ममता से कलुषित बुद्धि से नहीं. उपरोक्त बुद्धि से जाना चाहिए.
ईश्वर सदा बुद्धि रूपी गुहा में रहते हैं.इसे हृदय भी कहा है.वह अच्छी बुरी अवस्था में तुम्हारे साथ रहते हैं.ईश्वर श्रवण की इच्छा तुम्हारी प्रकृति का परिणाम है.
जवाब देंहटाएंबसन्त प्रभात