3/09/2011

ईश्वर की भक्ति का चमत्कार

भगवान् को शक्ल-सूरत से जानना, जानना नहीं होता, मानना   होता है. क्योकि जब हम एक साढ़े तीन हाथ का कोई ब्यक्ति देखते है तो इसी ने यह स्रष्टि बनाई है, यह सर्वागी है, ये सर्वशक्तिमान है- यह तो मानना  पड़ेगा.
जब हम एक छोटी सी  चीज में, छोटे से आकर में, भगवान् का भाव करेगे तो वह काल और द्रव्य की कल्पना उसके अन्दर, उसके एक कद में होती रहती है और मिट्टी रहती है. वह है क्या? उसका तत्व क्या है? जैसे आभूषण हम बहुत देखते है-छोटा बच्चा चमकता हुआ आभूषण देखता है, पहनता भी है लेकिन वह सोने को नहीं पहचानता है. उसी प्रकार भगवान् को जो लोग बहुत छोटे रूप मे देखते है, वे आभूषण तो पहनते है, परन्तु आभूषण स्वर्ण है, यह ज्ञान उनको नहीं होता.  जब सोने से प्रेम होगा तब पता लगायेगे की यह क्या है?
भगवत तत्व का ज्ञान तब होता है जब हमारे जीबन में भक्ति आती है. जब परमात्मा का ज्ञान होता  है तो जैसे आभूषण और स्वर्ण में फर्क नहीं है इसी तरह आत्मा और परमात्मा में कोई फर्क नहीं रह जाता.जब तक आप अपने अन्दर पूर्ण ज्ञान का और पूर्ण शक्ति का अनुभव नहीं करेगे तब तक आपके  सारे काम एवं संकल्प  तथा  सफलताये अधूरी रहेगी. लेकिन आप अपने में पूर्णता का अनुभव कर ले तो आप जो-जो करेगे वही पूर्ण होगा. आपके जीवन में उत्साह बना रहेगा , कभी टूटेगा नहीं. आपको हमेशा  सफलता मिलेगी, कही विफलता है ही नहीं. कही आप दुखी नहीं होगे. हमेशा सुखी रहेगे. कभी आप अपने को दीन-हीन महसूस नहीं करेगे.
यह जो ज्ञान है यह केवल समाधि लगाने के लिए नहीं है, हिमालय में जाने के लिए नहीं है या केवल मंदिर में बैठने के लिए नहीं है. यह केवल  यज्ञशाला में  रहने के लए नहीं है. भाव जहा रहे- रण में, वन में, आप पहाड़ पर रहे, एकाकी रहे. भीड़ में भले लोगो में रहे, बुरे लोगो में रहे, आप सबको आनंद बाटते रहे, सबको ज्ञान बाटते रहे, सबको जीवन दान करते रहेगे. यह तत्व ज्ञान भक्ति के द्वारा प्राप्त होता है.
अनन्य भक्ति का अर्थ होता है-ईश्वर के साथ भक्ति का सम्बन्ध रखे जो कभी बदलेगी नहीं. फिर आप परिवार में रहिये, ईश्वर कि भक्ति बनी है, समाज में जाईये, ईश्वर  की भक्ति बनी है. व्यापार में जाईये , राजनीती में जाईये-फसिये कही नहीं. दुनिया के सारे फसावो को, पक्षपातो को क्रूरताओ को मिटाने के लिए, हमारे ह्रदय में जब ईश्वर की भक्ति आती है तो वह ऐसा चमत्कार दिखाती है की मनुष्य के जीवन में कोई दुख  , कोई दीनता, कोई हीनता रहती ही नही है.