अमेरिका के सुप्रसिद्ध राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने रक्षामंत्री के स्थान पर एक उद्दंड स्वभाव के व्यक्ति को पदासीन किया. इस व्यक्ति का राष्ट्रपति से पुराना वैर था. इनके विषय में वह नाना प्रकार की बाते, टीका टिप्पड़ी तथा आलोचना किया करता था. राष्ट्रपति के कुछ शुभचिंतक एवं मित्र उनके पास पहुचे और बोले रक्षामंत्री के पद पर आपने जिस व्यक्ति को नियुक्त किया है उसके विषय में क्या आप भली भाती जानते है.
राष्ट्रपति ने उत्तर दिया हां जानता हूँ.
समय-समय पर वह आपको गोरिल्ला कहता रहा यह भी जानते है ?
हां, जानता हूँ.
कई जन सभाओं में उसने आपको अपशब्द भी कहे है.
मुझे मालूम है.
अनेक बार उसने आपका अपमान भी किया है.
वह भी मुझे मालूम है
इतना सब कुछ मालूम होते हुए भी आपने उस व्यक्ति को इतने महत्वपूर्ण पद पर कैसे बैठा दिया? मित्रो ने खीझ कर पूछा.
तो क्या हुआ? महत्वपूर्ण पद पर ही तो बैठाया है, गलत स्थान पर तो नहीं बैठाया/ चहरे पर उसी प्रकार स्वाभाविक मुस्कान लाते हुए लिंकन ने कहा.
पर आप यह क्यों नहीं समझते की...
लिंकन ने बात बीच में काटते हुए कहा मै कुछ समझू इससे पहले आपलोग यह क्यों नहीं समझते है की वह एक योग्य व्यस्थापक, संचालक और अपने क्षेत्र का कुशल तथा कर्मठ कार्यकर्ता भी है. वह भले ही अब्राहम लिंकन का अपमान कर सकता है, लेकिन उसके गुड और इसकी योग्ताये राष्ट्र के लिए हितकर एवं कल्याणकारी है. व्यक्तिगत द्वेष के आधार पर मै एक कार्यकुशल व्यक्ति को राष्ट्र से अलग कैसे कर दू? राष्ट्र को उसकी सेवाओं से वंचित किस प्रकार कर दू? मुझे लिंकन भक्त नहीं राष्ट्र भक्त चाहिए और मुझे विशवास है की वह राष्ट्रभक्त है.
यह सुनकर राष्ट्रपति के मित्र चुपचाप लौट गए.