9/26/2011

कलि में मानसिक पुण्यो का फल मिल जाता है पापो का नहीं,

 राजा परीक्षित माता के गर्भ में ही दग्ध हो चुके होते, पर भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा से बच गए. उन्होंने यह विचार किया कलि में मानसिक पुण्यो का फल मिल जाता है पापो का नहीं, कलि के गुड के लिए  उसे छोड़ दिया, मारा नहीं. एक दिन वे शिकार खेलने के लिए धनुष बाड लेकर वन में गए.  मृगो के पीछे दौड़ते-दौड़ते वे बहुत थक गए और प्यास से कंठ सूखने पर व्याकुल हो उठे. जलाशय न मिलने पर वे शमीक मुनि के आश्रम में जा पहुचे वह मुनि समाधि में स्थित थे उनको बाहर का कुछ भी ज्ञान न था. ऐसी अवस्था में राजा ने उनसे जल मागा.


जब कुछ उत्तर न मिला, तब रोष में आकर एक मरा साँप ऋषि के गले में डालकर वे अपने नगर को लौट आये. मुनि का पुत्र श्रंगी कौशिकी नदी के तट  पर बालको के साथ खेल रहा था. यह समाचार सुनकर क्रोध से उसके नेत्र लाल हो गए. उसने नदी के जल का आचमनकर राजा को शाप दे डाला.


मर्यादा का उल्लंघन करने वाले इस दुष्ट राजा को सातवे दिन मुझसे प्रेरित होकर तक्षक  सर्प डसेगा. यह कहकर श्रंगी अपने आश्रम में आया और पिता के गले में लटकता सर्प देखकर दुखित हो जोर जोर से रोने  लगा. पुत्र के रोने के शब्द सुनकर मुनि की समाधि टूट गयी. 


उन्होंने आखे खोली तो गले में सर्प पड़ा देखा. उसे फेककर पुत्र सेपूछा- अरे बेटा ! तुम क्यों रोते हो ? किसने तुम्हारा अपमान किया ? पुत्र ने सारा ब्रत्तान्त कह सुनाया. मुनि को जब यह ज्ञात हुआ की पुत्र ने राजा को शाप दे दिया है, तब उन्होंने पुत्र की सराहना नहीं की. उसकी नादानी की भर्त्सना  करते हुए कहा-अरे अज्ञानी ! थोड़े से अपराध पर तूने इतना भारी दंड दिया ? 


राजा साधारण मनुष्यों की तुलना के योग्य नहीं वह विष्णु का अंश होता है. उससे रक्षित प्रजा अपने धर्म कर्म में लगी रहती है. उसके न रहने पर राज्य में चोरो  का साम्राज्य हो जाता है, प्रजा का धन लूटा जाता है. स्त्रियों का अपहरण होता है. परस्पर एक दुसरे को मारते है. सनातन धर्म भी नष्ट हो जाता  है. वर्णसंकर संताने पैदा होती है. इन सबका पाप नृप हन्ता  को लगता है. तूने बड़ा अनुचित किया. प्यास से व्याकुल राजा हमारे आश्रम में आया था. वह शाप के योग्य न था. इस प्रकार दुखित होकर मुनि ने भगवान् से प्रार्थना की.


हे भगवन! अपक्वबुद्धि मेरे पुत्र ने आपके भक्त राजा को शाप दे डाला, बालक होने के कारण आप उसके अपराध को क्षमा करे.