अभी तक आपने पढ़ा श्रीमद भागवत का महात्म्य अब प्रथम स्कंध की कथा प्रारंभ हो रही है. सावधान होकर आप इसका श्रवण कर. द्वापर के अंत में व्यासजी ने प्रकट होकर इसकी रच की थी. यह कथा कल्पवृक्ष के सामान मनुष्यो क सभी मनोरथ पूर्ण करनेवाली है. इसमें बारह स्कंध, ३३५ अध्याय और अठारह हजार श्लोक है एवं शुकदेव और राजा परीक्षित का संबाद है. इसी को भागवत कहते है. इस कथा की निर्विघ्न समाप्ति हो, इसलिए व्यासजी आरम्भ में मंगलाचरण द्वारा भगवान शीक्रष्ण का ध्यान कर रहे है. आप लोग भी हाथ जोड़कर भगवान का ध्यान करे.
जन्माद्यस्य यतों व्यादी तर्ताश चार्थे श्वाभिग्याह स्वराट
तेने ब्रह्म ह्रदाय आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूर्यः
तेजोवारिम्रदाम यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गो मृषा
धाम्ना स्वेन सदा निरस्त्कुह्कम सत्यम परम धीमहि.
जो भगवान विश्व की उत्पत्ति, पालन और संहार करनेवाले है. जिनका आकाश आदि कार्यो में, अन्वय (सम्बन्ध) एवं अकार्य खापुश्पादी से व्यतिरेक ( आभाव) है, जो सर्वग्य, सर्वशक्तिमान तथा प्रकाशस्वरूप है, जिन्होंने संकल्पमात्र से ब्रह्मजी को वेद का उपदेश किया था, जिसमे विवेकी विद्वानों को भी मोह हो जाता है, मृग मरीचिका के सामान मिथ्या जगत भी जिनके आधार से सत्यव्रत प्रतीत हो रहा है एवं जिन्होंने अपने तेज से भक्तो का अज्ञान दूर किया है, उन सत्यस्वरूप परमात्मा श्रीकृष्ण का हम ध्यान करते है.
इस ग्रन्थ में भक्ति लक्षण परमधर्म का निरूपण किया गया है, जिसमे भगवान श्रीकृष्ण का ज्ञान बड़ी सरलता से प्राप्त हो जाता है, इसका श्रवण, मनन तथा चिंतन करने से जिस प्रकार भगवान सरलता से ह्रदय में स्थिर हो जाते है, उस प्रकार अन्य ग्रंथो के अध्ययन से नहीं होते यही इसकी विशेषता है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें