स्वामी अखान्दनान्दजी सरस्वती के आनंद रास रत्नाकर से
जो नारायण को अपने जीवन का संचालक बनाकर व्यवहार के रणक्षेत्र में अवतीर्ण होता है, वह सफल होता है और जो अकेले आता है, वह नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है.
यह आपके दैनिक जीवन की बात है. मालवीयजी कहा करते थे की आप घर से कोई काम करने के इए चले तो चार बार नारायण, नारायण, नारायण, नारायण बोलकर निकले. इससे क्या होगा की जिस प्रकार कोई नदी बहती है, कोई नहर चलती है और उसके मूल उद्गम से उसका सम्बन्ध बना रहता है तो वह नदी, वह नहर सूखती नहीं है. लेकिन यदि ऎसी कोई नदी या नहर हो जिसका अपने मूल उद्गम से कोई सम्बन्ध नहीं रहे तो वह नदी, वह नहर सूख जाएगी. ठीक इसी प्रकार जीवन की बात है. इसका मूल उद्गम है, नारायण परमेश्वर. यदि यह परमेश्वर के सम्बन्ध रखकर संसार के व्यवहार करेगा तो उसकी शक्ति बनी रहेगी.
परमेश्वर से सम्बन्ध बनाये रखने से तीन बात आपको हमेशा
मिलती रहती है -
१ आपकी जीवन धारा कभी विछिन्न नहीं होगी.
२ आपकी बुद्धि कभी समाप्त नहीं होगी,
३ आपके जीवन में हमेशा आनंद आता रहेगा.
और इसके विपरीत यदि आप ईश्वर के साथ सम्बन्ध तोड़ देगे तो जीवन की धारा कट पिट जायेगी आपके ज्ञान की धारा, बुद्धि की धारा, आपकी प्रज्ञा क्षीण हो जाएगी और आपको भीतर से आनंद आता है वह बंद हो जाएगा और आप उधर आनंद लेने लग जायेगे. तब आप जीवन लेने लगेगे दवाओं से, बुद्धि लेने लगेगे किताबो से और दूसरे लोगो से तथा आनंद लेने लगेगे विषय भोगो से यह इस बात का नमूना है की हमारे भीतर जो जीवन का , ज्ञान का और आनंद का मूल स्त्रोत है, उससे हम कट गए है.
हम और सब बाते भूल जाए तो भूल जाए परन्तु यह बात भूलने लायक नहीं है की यह जो हमारा मनुष्य शरीर दिखलायी पड़ता है, इसके भीतर जो समष्टि स्वामी है वह पमेश्वर बैठा हुआ है.
जो बड़े-बड़े लोग है, बड़े-बड़े व्यापारी है, बड़े-बड़े विचारक है, वे नारायण को भूल जाते है.. दुर्योधन गया रणभूमि में, तो नारायण को साथ लेकर नहीं गया, पर अर्जुन रणभूमि में नारायण को साथ
लेकर गया हम आपसे यह निवेदन करते है की आप कोई भी काम करे तो अकेले, असहाय, दीन-हीन नर के रूप में न करे, नारायण को अपना साथी बनाकर उसकी मदद से अपना काम प्रारंभ करे. आप असहाय है, यह मत समझे, यह समझे की आप जो भी काम करने जा रहे है, नारायण आपके साथ है.
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