आज हर देशवासी बड़ा असहाय होकर कह रहा है की हमारे गाँव बहुत ज्यादा पिछड़े हुए है. दुर्भाग्य से यह सत्य है. परन्तु वास्तविक स्थिति यह है की हमारे गाँव में वे सब वस्तुए विद्यमान हैं, जिनसे वे शहरों से भी अधिक सुन्दर और संपन्न बन सकते हैं. इससे शहरों का सदियों से बना हुआ प्रभुत्व छीन नहीं जाएगा; बल्कि शहरों को और अधिक सुन्दर और स्वस्थ बनाने में सहायता होगी. गाँव स्वस्थ होंगे तो दूध, फल, सब्जियां, अनाज और
दालें स्वाथ्यवर्धक होंगी; गांवों से शहरों की और पलायन रुकने से शहर में मिलने वाला जल और वायु भी अच्छा होगा. इससे पूरे पर्यावरण पर सार्थक प्रभाव पड़ेगा.
यह देश का दुर्भाग्य है की यहाँ के उद्योगपतियों का ध्यान गाँव से सम्बंधित उद्योग लगाने की और उचित मात्रा में नहीं गया, हलाकि शहरों की हर आवश्यक वस्तु विशेषकर स्वास्थ्यवर्धक खाने-पीने का सामान, कपड़ो के लिए कपास, रहने के भवनों के लिए ईट इत्यादि की उपलब्धी गांवों पर ही निर्भर करती है. गांवों में वे उद्योग लगें जो वहा का कच्चा माल जैसे दूध, गोबर, गोमूत्र, फल, सब्जियां इत्यादि की खपत करें तो गांवों का आर्थिक और शहरों का स्वस्थ्य संबंधी पक्ष मजबूत होगा. जबसे भारत सरकार और इसके adhikariyon ने रासायनिक खाद पर भारी
आर्थिक सहायता देना और कीटनाशक दवाओं का आयात करना प्रारंभ किया; तबसे फल, दालें, अनाज और सब्जयों के जहरीले होने से शहरवाले कई नई बीमारियों के शिकार होने लगे है. ये सब वस्तुए गांवों के खेतों से ही आती हैं. फलस्वरूप शहरों में बड़े छोटे अस्पतालों और नर्सिंग होमों की भरमार हो गई. हर दूसरा व्यक्ति मधुमेह, रक्तचाप और ह्रदयरोग से ग्रस्त है. शहरों में डाक्टरों की आवश्यकता इतनी बड़ी की हर डॉक्टर आर्थिक द्रष्टि से संपन्न हुआ और दवाओं का व्यापार सबसे अच्छा धंधा बन गया, केमिस्टों की दुकाने दवाओं से लबालब भरी हैं और दवा लेने वालों की न समाप्त होनेवाली लाईन लगी हैं. यह विडम्बना ही है.
विदेशी उद्योगपतियों का प्रभाव
स्वंतंत्रता के पश्चात सरकार की बहुत सारी आर्थिक नीतियां तथा कथित विकसित देशों के सुझावों और इशारों पर चलती रही है और अब भी चल रही है. भारतीय विशेषज्ञों के कहने के बावजूद की देशी गाय के गोबर से बनी खाद प्रथ्वी का प्राकृतिक पोषक आहार है, भारत सरकार रासायनिक खाद का लगातार आयात कर रही है. रासायनिक खाद बनानेवाली विदेशी कंपनियों के प्रलोभन देने पर सरकारी अफसरों ने भारत सरकार की ओर से भारी आर्थिक सहायता देकर किसानों को केमिकल फर्टिलाइजर के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया. भोले-भाले किसान रासायनिक खाद के प्रारंभिक परिणामों से प्रभावित होकर इसका व्यापक प्रयोग करने लगे. कुछ ही वर्षों के प्रयोग से जब धरती की उर्वरा शक्ति kam हो गयी तो किसानों की फसलें नष्ट होनी प्रारंभ हुई, किसान बैंकों और महाजनों से भारी सूद पर कर्जा लेने को बाध्य हो गए. ऋण का भुगतान न होने पर किसानों ने आत्महत्या का सहारा लिया. कसानों ने सोचा आत्महत्या करने से उनके परिवार की आर्थिक समस्याओं का हल हो जायेगे; क्योंके अब तो कुछ राज्य सरकारों ने भी आत्महत्या करने वाले किसान के परिवार को अच्छी सहायता देने के कानून भी बना दिए हैं. आत्महत्या के आकडे चौका देनवाले हैं. पिछले चार वर्षों में दर्ज हुए आत्महत्या के १५० लाख मामले भारत के स्वंत्रता के बाद के आर्थिक पक्ष पर एक न मिटने वाला कलंक है.
जैविक खाद भूमि पोषक
हम ऐसी भयानक स्थिति से कैसे उबरें? भारत सरकार का ध्यान गाँव की समस्याओं की ओर कदापि नहीं जा रहा. पत्रिकाओं और टी वही पर किसानों की आत्महत्याओं की चर्चाओं के कारण भारत सरकार ने और कुछ राज्य सरकारों ने जल्दी से आदेश पारितकर किसानों के बैंकों के ऋण तो माफ़ कर दिए, परन्तु यह समस्या का स्थायी समाधान नहीं. सरकार जल्दी से निर्णय लेकर केमिकल फर्तिलैजर का आयात बंद करे और युद्ध स्तर पर किसानों को विभिन्न प्रकार की गोबर की खाद बनाने का व्यापक प्रशिक्षण दे. समय-समय पर इस प्रश्नों को उठाया गया, केमिकल फर्टिलाइजर की विदेशी कंपनियों के भारत रह रहे अधिकारी आदि पैसे के जोर से अपनी लोबी इतनी मजबूत रखते है, जिससे सरकार उनसे आयात की हुई खाद पर आर्थिक सहायत देकर सीधे-सादे किसानों को इसको खरीदने का प्रलोभन देकर मनवा लेती है.
स्वयंसेवी संस्थाओं का योगदान
इन सब दुष्प्रभावों को रोकने के लिए कई स्वयंसेवी संस्थान किसानों को रासायनिक खादों का प्रयोग न करने की सलाह दे रही है. थोड़े से उधोगपति भी किसानों को ग्रीन एग्रीकल्चर करने का प्रोत्साहन दे रहे हैं. कई उद्योगपति स्वयं भी गो- गोबर आधारित कृषि कर रहे हैं और ऐसी ही कृषि से उत्पादित वस्तुए किसानों से अधिक मूल्य देकर खरीद रहे है. इसका व्यापक प्रभाव तब हो, जब हजारों छोटे-बड़े उद्योगपति किसानों से जैविक खेती करवाए, किसानों से ऐसी खेती से उपार्जित अनाज, फल, सब्जियां और दालें छोटे-बड़े शहरों में बेचें. इससे किसान तो पनपेंगें ही, ये वस्तुए फैलते हुए रोगों को रोकेंगी, लोग स्वस्थ होंगे, उनकी कार्य क्षमता बढ़ेगी, जिससे देश संपन्न होगा. जब जैविक खाद की महिमा बढ़ेगी तो किसान देशी गाय भी पालेंगे, जिसके गोबर से वह विभिन्न प्रकार की खाद बनाकर अपने खेतों की उर्वरा शक्ति फिर से वापस लायेगा और अपनी जरूरत से अधिक खाद को बेंचकर आर्थिक लाभ भी ले सकता है. वास्तव में इस विकट स्थिति में उद्द्योगपतियों को आगें आकर गाँव और गायों की स्थिति को ठीक करने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए. वे गांवों में जैविक खाद द्वारा कृषि कराये और गो-उत्पादों जैसे गोबर, गोमूत्र और दूध- संबंधी उद्योग लगाए, जिससे गांवों और देश की सर्वांग उन्नति ही. इस प्रकार शहर और ग्राम अपनी आर्थिक और स्वस्थ्य संबंधी उन्नति में एक दुसरे के पूरक बन सकेंगे.
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