7/21/2014

अनुष्ठान कौन करे ?

मंत्रानुष्ठान
‘श्रीरामचरितमानस’ में आता है कि मंत्रजप भक्ति का पाँचवाँ सोपान है |

मंत्रजाप मम दृढ़ विश्वासा |
पंचम भक्ति यह बेद प्राकासा ||


    मंत्र एक ऐसा साधन है जो मानव की सोयी हुई चेतना को, सुषुप्त शक्तियों को जगाकर उसे महान बना देता है |

    जिस प्रकार टेलीफोन के डायल में 10 नम्बर होते हैं | यदि हमारे पास कोड व फोन नंबर सही हों तो डायल के इन्हीं 10 नम्बरों को ठीक से घुमाकर हम दुनिया के किसी कोने में स्थित इच्छित व्यक्ति से तुरंत बात कर सकते हैं | वैसे ही गुरु-प्रदत्त मंत्र को गुरु के निर्देशानुसार जप करके, अनुष्ठान करके हम विश्वेशवर से भी बात कर सकते हैं |
    मंत्र जपने की विधि, मंत्र के अक्षर, मंत्र का अर्थ, मंत्र-अनुष्ठान की विधि जानकर तदनुसार जप करने से साधक की योग्यताएँ विकसित होती हैं | वह महेश्वर से मुलाकात करने की योग्यता भी विकसित कर लेता है | किन्तु यदि वह मंत्र का अर्थ नहीं जानता या अनुष्ठान की विधि नहीं जानता या फिर लापरवाही करता है, मंत्र के गुंथन का उसे पता नहीं है तो फिर ‘राँग नंबर’ की तरह उसके जप के प्रभाव से उत्पन्न आध्यात्मिक शक्तियाँ बिखर जायेंगी तथा स्वयं उसको ही हानि पहुंचा सकती हैं | जैसे प्राचीन काल में ‘इन्द्र को मारनेवाला पुत्र पैदा हो’ इस संकल्प की सिद्धि के लिए दैत्यों द्वारा यज्ञ किया गया | लेकिन मंत्रोच्चारण करते समय संस्कृत में हृस्व और दीर्घ की गलती से ‘इन्द्र से मारनेवाला पुत्र पैदा हो’ - ऐसा बोल दिया गया तो वृत्रासुर पैदा हुआ, जो इन्द्र को नहीं मार पाया वरन् इन्द्र के हाथों मारा गया | अतः मंत्र और अनुष्ठान की विधि जानना आवश्यक है |

1.    अनुष्ठान कौन करे ?: गुरुप्रदत्त मंत्र का अनुष्ठान स्वयं करना सर्वोत्तम है | कहीं-कहीं अपनी धर्मपत्नी से भी अनुष्ठान कराने की आज्ञा है, किन्तु ऐसे प्रसंग में पत्नी पुत्रवती होनी चाहिए |
स्त्रियों को अनुष्ठान के उतने ही दिन आयोजित करने चाहिए जितने दिन उनके हाथ स्वच्छ हों | मासिक धर्म के समय में अनुष्ठान खण्डित हो जाता है |

2.    स्थान: जहाँ बैठकर जप करने से चित्त की ग्लानि मिटे और प्रसन्नता बढ़े अथवा जप में मन लग सके, ऐसे पवित्र तथा भयरहित स्थान में बैठकर ही अनुष्ठान करना चाहिए |
3.    दिशा: सामान्यतया पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके जप करना चाहिए | फिर भी अलग-अलग हेतुओं के लिए अलग-अलग दिशाओं की ओर मुख करके जप करने का विधान है |
‘श्रीगुरुगीता’ में आता है:
“उत्तर दिशा की ओर मुख करके जप करने से शांति, पूर्व दिशा की ओर वशीकरण, दक्षिण दिशा की ओर मारण सिद्ध होता है तथा पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जप करने से धन की प्राप्ति होती है | अग्नि कोण की तरफ मुख करके जप करने से आकर्षण, वायव्य कोण की तरफ शत्रु नाश, नैॠत्य कोण की तरफ दर्शन और ईशान कोण की तरफ मुख करके जप करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है | आसन बिना या दूसरे के आसन पर बैठकर किया गया जप फलता नहीं है | सिर पर कपड़ा रख कर भी जप नहीं करना चाहिए |

साधना-स्थान में दिशा का निर्णय:  जिस दिशा में सूर्योदय होता है वह है पूर्व दिशा | पूर्व के सामने वाली दिशा पश्चिम दिशा है | पूर्वाभिमुख खड़े होने पर बायें हाथ पर उत्तर दिशा और दाहिने हाथ पर दक्षिण दिशा पड़ती है | पूर्व और दक्षिण दिशा के बीच अग्निकोण, दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच नैॠत्य कोण, पश्चिम और उत्तर दिशा के बीच वायव्य कोण तथा पूर्व और उत्तर दिशा के बीच ईशान कोण होता है |
4.    आसन:  विद्युत के कुचालक (आवाहक) आसन पर व जिस योगासन पर सुखपूर्वक काफी देर तक स्थिर बैठा जा सके, ऐसे सुखासन, सिद्धासन या पद्मासन पर बैठकर जप करो | दीवार पर टेक लेकर जप न करो |
 

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