दो - कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भये सदग्रंथ
दम्भिंह निज मति कल्पि करी प्रगट किये बहु पंथ
चो - भये लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म
सुनु हरिजान ज्ञान निधि कहु कछुक कलिधर्म
बरन धर्म नहीं आश्रम चारी. श्रुति बिरोध रत सब नर नारी
द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन. कोऊ नहिमान निगम अनुसासन
मारग सोई जा कहू जोई भावा . पंडित सोई जो गाल बजावा
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई. ता कहू संत कहई सब कोई
सोई समान जो परधन हारी. जो कर दंभ सो बड आचारी.
जो कह झूठ मसखरी जाना. कलिजुग सोई गुनवंत बखाना
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी. कलिजुग सोई ज्ञानी सो बिरागी
जाके नख अरु जटा बिसाला. सोई तापस प्रसिद्द कलिकाला.
दो - असुध बेश भूषन धरे भच्छाभच्छ जे खाही
तेई जोगी तेई सिद्ध नर पूज्य ते कलिजुग माहि
सो - जे अपकारी चार तिन्ह कर गौरव मान्य तेई
मन क्रम बचन लबार तेई बकता कलिकाल महू
चो- नारी बिबस नर सकल गोसाई. नाचहि नर मरकट की नाई .
सूद्र द्विजन्ह उपदेसहि गयाना. मेली जनेऊ लेही कुदाना.
सब नर काम लोभ रत क्रोधी. देव विप्र श्रुति संत बिरोधी.
गुण मंदिर सुन्दर पति त्यागी. भजहि नारी पर पुरुष अभागी.
सौभागिनी बिभूषण हीना. बिधवन्ह के सिंगार नबीना.
गुर सिष बधिर अंध का लेखा. एक न सुनी एक नहीं देखा.
हरई शिष्य धन सोक न हरई. सो गुर घोर नरक महू परई.
मातु पिता बालकन्हि बोलावाही. उदार भरे सोई धर्म सिखावाही.
दो - ब्रह्म ज्ञान बिनु नारी नर कहहि न दूसरी बात
कौड़ी लागी लोभ बस कराही बिप्र गुर घात
बादही सूद्र द्विजन्ह सन हम तुम्ह ते कछु घाटी.
जानई ब्रह्म सो बिप्रबर आखी देखावाही डाटी
चो - पर त्रिय लम्पट कपट सयाने. मोह द्रोह ममता लपटाने.
तेई अभेदबादी ज्ञानी नर. देखा मै चरित्र कलिजुग कर.
आपु गए अरु तिन्हहू घालहि. जे कहू सत मारग प्रतिपालाही.
कल्प कल्प भरी एक एक नरका. परही जे दूषहि श्रुति करी तरका.
जे बरनाध तेली कुम्हारा. स्वपच किरात कोल कलवारा.
नारी मुई गृह सम्पति नासी. मूड मुडाई होही सन्यासी.
ते बिप्रन्ह सन आपु पुजावही. उभय लोक निज हाथ नासवाही.
बिप्र निरच्छर लोलुप कामी. निराचार सठ ब्रश्ली स्वामी.
सूद्र करहि जप तप ब्रत नाना. बैठी बरासन कहहि पुराना.
सब नर कल्पित करही अचारा. जाई न बरनी अनीति अपारा.
दो - भये बरन संकर कलि भिन्नसेतु सब लोग.
करही पाप पावही दुःख भय रुज सोक बियोग.
श्रुति सम्मत हरी भक्ति पथ संजुत बिरति बिबेक.
तेहि न चलहि नर मोह बस कल्पहि पंथ अनेक
छ - बहु दाम सवारही धाम जती. विषया हरी लीन्हिन रही बिरती .
तपसी धन्वंत दरिद्र गृही. कलि कौतुक तात न जात कही.
कुलवंत निकरही नारी सती. गृह आनहि चेरी निबेरी गती.
सुत मानही मातु पिता तब लौ. अबलानन दीख नहीं जब लौ.
ससुरारी पिआरी लगी जब ते. रिपुरूप कुटुंब भये तब ते.
नृप पाप परायण धर्म नहीं. करी दंड बिडम्ब प्रजा नितही.
धन्वंत कुलीन मलीन अपी. द्विज चिन्ह जनेऊ उघार तपी.
नहीं मान पुराण न बेदहि जो. हरि सेवक संत सही कलि सो.
कबी वृन्द उदार दुनी न सूनी. गुन दूषक ब्रात न कोपि गुनी.
कलि बारही बार दुकाल परे . बिनु अन्न दुखी सब लोग मरे.
दो - सुनु खगेस कलि कपट हठ दंभ द्वेष पाषंड.
मान मोह मारादी मद ब्यापी रहे ब्रहमांड.
तामस धर्म करही नर जप तप ब्रत मख दान.
देव न बरषही धरनी बये न जामही धान.
छ- अबला कच भूषन भूरी छुधा. धनहीन दुखी ममता बहुधा.
सुख चाहहि मूढ़ न धर्म रता. मति थोरी कठोरी न कोमलता.
नर पीड़ित रोग न भोग कही. अभिमान बिरोध अकारनही.
लघु जीवन संबतु पञ्च दसा कल्पांत न नास गुमान असा.
कलिकाल बिहाल किये मनुजा. नहीं मानत क्वो अनुजा तनूजा.
नहीं तोष बिचार न सीतलता. सब जाती कुजाती भये मगता.
ईरिषा परुषाच्छर लोलुपता. भरी पूरी रही समता बिगता.
सब लोग बियोग बिसोक हए. बरनाश्रम धर्म अचार गए.
दम दान दया नहीं जानपनी. जड़ता प्रबंचन्ताती घनी.
तनु पोषक नारी नरा सगरे. परनिंदक जे जग मो बगरे.
दो - सुनु ब्यालारी काल कलि मल अवगुन आगार.
गुनऊ बहुत कलिजुग कर बिनु प्रयास निस्तार.
क्रत्जुग त्रेता द्वापर पूजा मख अरु जोग.
जो गति होई सो कलि हरी नाम ते पावही लोग.
क्रत्जुग सब जोगी बिग्याने. करी हरी ध्यान तरही भाव प्राणी.
त्रेता बिबिध जगी नर करही. प्रभुहि समर्पी कर्म भाव तरही.
द्वापर करी रघुपति पद पूजा. नर भाव तरही उपाय न दूजा.
कलिजुग केवल हरी गुन गाहा. गावत नर पावही भव थाहा.
कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना. एक आधार राम गुन गाना.
सब भरोस तजि जो भज रामही. प्रेम समेत गाव गुण ग्रामहि
सोई भव तर कछु संसय नाही. नाम प्रताप प्रगट कलि माही.
कलि कर एक पुनीत प्रतापा . मानस पुन्य होही नहीं पापा.
दो - कलिजुग सम जुग आन नहीं जौ नर कर बिस्वास.
गाई राम गुन गन बिमल भव तर बिनही प्रयास.
प्रगट चारी पद धर्म के कलि महू एक प्रधान.
जेन केन बिधि दीन्हे दान करई कल्याण.
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