3/29/2011

लोग एक-दुसरे से मिलने पर राम-राम कहते है.

बाल्मिकिजी मरा-मरा जपने लगे और ऐसी तपस्या में सलग्न हुए की ब्रह्म के सामान हो गए. इसलिए बाल्मीकि रामायण के प्रारंभ में ही उनके लिए तपस्वी शब्द का प्रयोग किया गया है.
बल्मिकिजी पब तप सिद्ध होकर दुबारा सप्तर्षियो से मिले तब उन्होंने यह प्रश्न किया की महाराज इस संसार में सबसे श्रेष्ठ गुणवान मनुष्य कौन है? उनके द्वारा किया गए प्रश्न है-
इस समय इस संसार में गुणवान, वीर्यवान, धर्मग्य, क्रतग्य, सत्यवक्ता और दृढ प्रतिज्ञ कौन है?
कौन सदाचार परायण, समस्त प्राणियों का हितसाधक, विद्वान, सामर्थ्शाली और प्रियदर्शन है ?
मन पर अधिकार रखनेवाल, क्रोधजयी, कान्तिमान और अनिन्दक कौन है?
संग्राम में कुपित होने पर देवता भी किससे डरते है?
मै यह सब जानना चाहता हूँ. मुझे यह जानने की बड़ी उत्सुकता है.
इस पर ऋषियों ने उत्तर दिया की बाल्मिकिजी ऐसे गुणागार तो केवल  ईक्षवाकुवंशी श्री रामचन्द्र  ही है और यह बात जन-जन को मालूम है.
वास्तव में इस धरती पर  भगवान् श्रीरामचंद्र का नाम सबके पास पंहुचा हुआ है. ऐसा कोई नहीं है ,जिसके कानमे राम का नाम  न पड़ा हो. आज भी लोग एक-दुसरे से मिलने पर  राम-राम कहते है.
बाल्मीकि रामायण में जिन राम का वर्णन है उनका विचार यदि अभिधा वृत्ति से ही किया जाय तो वे मनुष्य रूप से ही वर्णित हुए है. वाल्मीकि रामायण के राम मानव राम है. न तो वे मोहविनाशक ज्ञान के रूप में वर्णित  है, न अवतारी नारायण के रूप में वर्णित है और न तुरीय तत्व के रूप में वर्णित है. यह सब बाते तो लक्षणा से प्रतीकात्मक अर्थ करे कही जाती है.
सीढ़ी बात है की अयोध्या नगरी है, उसमे कौसल्या और दशरथ दंपत्ति है और उनके पुत्र है रामचंद्र. वे मनुष्यों के रूप में इतने सद्गुण संपन्न है की भूत, वर्तमान और भविष्य में सदा सर्वदा मानव के आदर्श रूप में बने रहेगे. एक सच्चे मनुष्य के जीवन में कितने और कैसे-कैसे गुण होने चाहिए, उनका व्यवहार कैसा होना चाहिए, ह्रदय कैसा होना चाहिए, इसके लिए श्रीराम चंद्रजी का चरित्र आदर्श है.
इसलिए हैं यह मानना चाहिए की श्रीराम चन्द्र भगवान् तो हमारे जीवन है, हमारी आखो के सामने है और सद्गुण संपन्न होकर हमें मार्ग दिखा रहे है.
यदि किसी को यह बात मालूम पड़ जाय की श्री राम मनुष्य  नहीं साक्षात् नारायण है तो रावण तक भी यह खबर पहुच जायगी और वह ब्रह्मा  के पास जाकर लड़ पड़ेगा. कहेगा की तुमने तो मुझे वरदान दिया था की मै मनुष्य के हाथो ही मरुगा. फिर तुमे  मुझे मारने के लिए नारायण को क्यों भेज दिया? यदि नारायण मुझे मारेगे तो तुम्हारा  यह वरदान झूठा हो गया की मनुष्य और वानर के अतिरिक्त अन्य किसी से मुझको भय नहीं रहेगा. इसलिए श्रीराम यदि मनुष्य न हो विष्णु देवता के रूप में प्रख्यात हो जाय तो ब्रह्माजी द्वारा रावण को दिया हुआ वरदान निराधार हो जाएगा.

यह बात भी ध्यान में रखने की है की हिंदी में भगवान् शब्द ईश्वर के लिए चल गया है. वैशनव लोग भगवान् शब्द का और शैव लोग ईश्वर शब्द का प्रयोग करते है. भगवान् शब्द संस्कृत में संज्ञा नहीं है, विशेषण है. इसलिए भवान व्यासः, भगवान् नारदः बोलते है. लेकिन विषेसड   होने पर भी भगवान् शब्द का प्रयोग बाल्मीकि रामायण  में बहुत कम, नाम मात्र का प्राप्त होता है.

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