स तरति, स तरति, स लोकंस्तार्यती
वह पार होता है. वह माया से पार होता है. वह लोको को भी माया से पार कर देता है.
वह भक्त स्वयं तो माया से पार होता ही है, उसके द्वारा दूसरे भी माया से पार हो जाते है.
यह संसार माया का खेल है. यदि कोई जादू के रूपये एकत्र कर ले तो क्या वे स्थाई रहेगे? जादू के खेल में जो स्त्री पुरुष का सम्बन्ध देखा वह क्या सच्चा है?
यह जो कुछ दीख रहा है, सब जादू का खेल माया है. जीव इसमें उलझ गया इसे सच्चा मान बैठा. इससे पार कैसे होगा? इसके लिए साधन बतलाया. जो व्याकुल होता है पार जाने के लिए, जो माया के पदार्थो से - धन, स्त्री-पुत्र, पद आदि से प्रेम नहीं करता, जो इनको मेरा मानकर बढ़ता नहीं, जिसे यह ज्ञान है की हमें प्रभु के समीप जाना है और जो उस प्रभु को ही चाहता है, उसी को प्राप्त करने के लिए रोता रहा है, उसे प्रभु स्वयं मिल जाते है.
कोई रजा विदेश गए. उनके कई रनिया थी, उन्होंने वह से रानियों को पात्र लिखकर पूछा की लौटते समय किसके लिए क्या लेते आवे. जिस रानी को जो चाहिए था उसने वह लिख दिया.राजा ने वह सब सामान बाजार से मगा लिया. छोटी रानी का पत्र खोला गया तो उसमे केवल एक लिखा था. राजा ने अपने सचिव से पूछा-इस एक का क्या अर्थ है?
सचिव ने बताया-छोटी महारानी का तात्पर्य है की उन्हें कोई सामग्री नहीं चाहिए. उन्हें तो एक आपको पाने की इच्छा है.
राजा स्वदेश लौटे जिस रानी ने जो सामग्री मगाई थी वह उसके भवन में भेज दी. जिस छोटी रानी ने एक मागा था उसके राजभवन में वे स्वयं गए.
इस माया के खेल में जो खिलौने नहीं चाहता, उस मायावी को चाहता है, उसे वह प्राप्त होता है. सच्चे प्रेम के सामने परदे नहीं तित्कते. जैसे ज्ञान आवरण भंग कर डा है वैसे ही प्रेम भी आवरण भंग करता है.
जो इस मार्ग पर चलता है उसे अटूट अखंड प्रेम प्राप्त होता है. वह स्वयं तो माया से पार हो ही जाता है, दूसरो को भी माया से पार कर देता है, क्योकि जो उस मायावी को जान चूका, पा चूका, उसके सामने माया टिकती नहीं है.
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