8/09/2010

भीष्म के सामान धर्म का तत्व जाननेवाला दूसरा नहीं

कुंती कहती है भगवान् आप आज हम लोगो को छोड़कर जा रहे है, आपके सिवा हमारा  कोई दूसरा रक्षक नहीं है. आप ऐसी कृपा करे की मेरा  मन आपमें ही सदा लगा रहे. मै आपके मंगलमय दिव्य नामो  को स्मरण कर बार-बार प्रणाम करती हूँ, मुझपर आपकी दया सदा बनी रहे. इस प्रकार कुंती भावपूर्ण छब्बीस श्लोको से स्तुति कर  अश्रुपूर्ण नेत्रों से भगवान श्रीकृष्ण को निहारती हुई चुप हो गई.

कुंती की प्रेममयी स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान मुस्कराते हुए बोले- बुआ जी ! तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी, यह कहकर श्रीकृष्ण फिर हस्तिनापुर लौट आये.
इधर युधिष्ठिर की विलक्षण दशा थी. वह अपने सुह्रद और बंधुओ के वध का चिंतन करते हुए बड़े मोहपाश में बंध गए थे. वे कहा करते थे मैंने इस नश्वर  शरीर के लिए कितनी अक्षौहिणी सेनाओ का नाश कर डाला. मेरी क्या गति होगी ? करोडो वर्षों तक भी मेरा नरक से उद्धार होना संभव नहीं है.

व्यास आदि महार्षियो ने तथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण  ने बहुत से इतिहासों द्वारा युधिष्ठिर को समझाया किन्तु उनका शोक निवृत्त नहीं हुआ. कारण भगवान श्री कृष्ण अपने अनन्य भक्त भीष्म पितामह की महिमा लोक  में अभिव्यक्त करने के निमित्त उनके मुख से निकले उपदेशाम्रत से उनका मोह निवृत्त कराना चाहते थे.

एक दिन महाराज युधिष्ठिर नित्य की भांति  भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन करने उनके निवासस्थान पर गए, वहा उन्होंने भगवान कोनेत्र बंदकर ध्यानमग्न देखा, कुछ देर बाद जब भगवान ने नेत्र खोले , तब युधिष्ठिर ने प्रणाम कर पूछा-भगवान आप किसका ध्यान कर रहे थे ?
यह सुनकर भगवान के नेत्रों में अश्रु छलक  आये, उन्होंने उदास होकर कहा-राजन! म्रतुशय्या पर लेटे भीष्म  बड़े ही आर्त भाव से मेरा ध्यान कर रहे थे. उनसे आकृष्ट होकर मै वहा उन्ही के पास चला गया था. अब भरत वंशी सूर्य  अस्त होने ही वाला है. आपको जो कुछ सीखना हो उनसे सीख लीजिये.

महान योद्धा परमज्ञानी मेरे अनन्य भक्त भीष्म  के सामान  धर्म का तत्व जाननेवाला दूसरा नहीं है, उनके समीप जाकर आप समस्त धर्मो का श्रवण करे. मेरा विश्वास है की उनके उपदेश से आपके सब संदेह निवृत्त हो जायेगे.

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