सूतजी सौनकादी ऋषियों के छः प्रश्नों को सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और श्री शुकदेवजी का ध्यान कर कहने लगे- कृष्ण सम्बन्धी प्रश्नों से लोगो का महान कल्याण होता है और आत्मा को शांति प्राप्त होती है.
चार प्रश्नों के उत्तर और भक्ति का महत्त्व
क्रिश्न्भाक्तिः परम श्रेयः शास्त्र्सारास्च सैव ही.
प्रयोजनम सतो रक्षा कर्म shrastyaadi लक्षणं .
अवतार असंख्येय धर्मो भगवते स्थितिः.
चतुर्नामत्र शेषस्य तृतीये चोत्तरम कृतं.
संसार में जीवो के श्रेय का मुख्य साधन और समस्त शास्त्रों का सार यही है की मनुष्यों को श्रीकृष्ण में निश्चल भक्ति हो. इसमें ज्ञान और वैराग्य शीर्घ्र ही प्राप्त हो जाते है. धर्मं का अनुष्ठान करने पर भी यदि भगवान की कथा में रूचि नहीं हुई तो केवल परिश्रम ही हाथ लगता है, अन्य कुछ नहीं. संसार में धर्म का प्रयोजन मोक्ष है, अर्थोपार्जन नहीं. अर्थ का प्रयोजन भी धर्मोपर्जन है. विषय सुख नहीं. विषय भी शरीर के निर्वाहार्थ है, इन्द्रियों की तृप्ति उनका प्रयोजन नहीं, संसार में तत्व की जिज्ञासा ही जीवन का प्रयोजन है, केवल कर्मजाल में फसे रहना नहीं, तत्व भगवान श्रीकृष्ण ही है.
इसलिए सर्वदा निश्चल मन से उन्ही का श्रवण कीर्तन, ध्यान तथा पूजन करना चाहिए-
तस्मादेके न मनसा भगवान सात्व्ताम पतिः.
श्रोतव्यः कीर्तितव्यश्च ध्येयः पूज्यश्च नित्यदा.
इसमें मनुष्यों का बंधन हेतु अहंकार निवृत्त हो जाता है और भगवान की कथा में दृढ रूचि उत्पन्न हो जाती है, जब मनुष्य भागवत कथा सुनने का दृढ संकल्प कर लेता है, तब भगवान उसके ह्रदय में प्रगट होकर उसकी सम्पूर्ण वासनाए नष्ट कर देते है, फिर चित्त कभी काम , क्रोध आदि शत्रुओ से आक्रांत नहीं होता और उसके सब संशय सर्वदा के लिए निवृत्त हो जाते है, चित्त के सत्वगुण में स्थित होने के कारण वह परम शांति को प्राप्त होता है. प्रकृति से परे एक ही भगवान श्रीकृष्ण सृष्टि, पालन और संहार के हेतु ब्रह्मा, विष्णु, महेश जैसे नाम गुणों के अनुसार धारण करते है.
वेद, यग्य, जब, तप आदि सब इन्ही वासुदेव का प्रतिपादन करते है, क्योकि ये सभी भगवत्प्राप्ति के उपाय है.
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