महाभारत युद्ध के आरम्भ में भगवान श्री कृष्ण जब अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे, तब हनुमानजी ने ध्वजा पर बैठे-बैठे गीता का श्रवण किया. गीता की समाप्ति पर अर्जुन की तरह हनुमानजी ने भी भगवान का पूजन कर उनसे कहा, भगवान, मै भी आपका शिष्य हूँ, कारण मैंने ध्वजा पर बैठे-बैठे ही आपसे गीता सुनी है,
इस पर भगवान ने कहा- यह तो तुमने बहुत अनुचित किया. श्रोता का यह धर्म नहीं की वह वक्ता से ऊपर बैठकर कथा सुने. इसलिए तुम पिशाच हो जाओ. इस पर जब हनुमानजी ने प्रार्थना कर शाप निवृत्ति का उपाय पूछा तब भगवान ने गीता पर भाष्य करने को कह. तदनुसार हनुमानजी ने गीता पर भाष्य किया, वह पैशच्यभाश्य के नाम से प्रसिद्ध है, इस प्रकार वे शाप मुक्त हो सके थे. इसलिए कथा सुनते समय वक्ता के बराबर या ऊपर आसन पर कभी न बैठे.
श्रीमद भागवत सुनने से क्या-क्या मिलता है -
जिस स्त्री को मासिक धर्म न गोह हो, जिसे एक बार ही प्रसव हुआ हो, जिसका कभी प्रसव न हुआ ही, जिसके बच्चे मर जाते हो, जिसका गर्भ गिर जाता ही, ऐसी स्त्रियों को प्रयत्न पूर्वक इस कथा का श्रवण करना चाहिए, इस कथा के श्रवण से ये सारे दोष नष्ट हो जाते है,
दरिद्र, क्षयरोगी, अभागा, संतानही, पापी तथा मोक्षाभिलाशी पुरुष श्रीमद भागवत कथा को अवश्य सुने.
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