7/21/2014

कितने दिन में अनुष्ठान पूरा करना है?


जप की संख्या :
अपने इष्टमंत्र या गुरुमंत्र में जितने अक्षर हों उतने लाख मंत्रजप करने से उस मंत्र का अनुष्ठान पूरा होता है | मंत्रजप हो जाने के बाद उसका दशांश संख्या में हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन और मार्जन का दशांश ब्रह्मभोज कराना होता है | यदि हवन, तर्पणादि करने का सामर्थ्य या अनुकूलता न हो तो हवन, तर्पणादि के बदले उतनी संख्या में अधिक जप करने से भी काम चलता है | उदाहणार्थ: यदि एक अक्षर का मंत्र हो तो 100000 + 10000 + 1000 + 100 + 10 = 1,11,110 मंत्रजप करने सेसब विधियाँ पूरी मानी जाती हैं |

अनुष्ठान के प्रारम्भ में ही जप की संख्या का निर्धारण कर लेना चाहिए। फिर प्रतिदिन नियत स्थान पर बैठकर निश्चित समय में, निश्चित संख्या में जप करना चाहिए।
अपने मंत्र के अक्षरों की संख्या के आधार पर निम्नांकित तालिका के अनुसार अपने जप की संख्या निर्धारित करके रोज निश्चित संख्या में ही माला करो। कभी कम, कभी ज़्यादा......... ऐसा नहीं।
सुविधा के लिए यहाँ एक अक्षर के मंत्र से लेकर सात अक्षर के मंत्र की नियत दिनों में कितनी मालाएँ की जानी चाहिए, उसकी तालिका यहाँ दी जा रही हैः

 
अनुष्ठान हेतु प्रतिदिन की माला की संख्या

कितने दिन में अनुष्ठान पूरा करना है?
मंत्र के अक्षर
दिन में
दिन में
11 दिन में
15 दिन में
21 दिन में
40 दिन में
एक अक्षर का मंत्र
150 माला
115 माला
95 माला
70 माला
50 माला
30 माला
दो अक्षर का मंत्र
300 माला
230 माला
190 माला
140 माला
100 माला
60 माला
तीन अक्षर का मंत्र
450 माला
384 माला
285 माला
210 माला
150 माला
90 माला
चार अक्षर का मंत्र
600 माला
460 माला
380 माला
280 माला
200 माला
120 माला
पाँच अक्षर का मंत्र
750 माला
575 माला
475 माला
350 माला
250 माला
150 माला
छः अक्षर का मंत्र
900 माला
690 माला
570 माला
420 माला
300 माला
180 माला
सात अक्षर का मंत्र
1050 माला
805 माला
665 माला
490 माला
350 माला
210 माला


जप करने की संख्या चावल, मूँग आदि के दानों से अथवा कंकड़-पत्थरों से नहीं बल्कि माला से गिननी चाहिए। चावल आदि से संख्या गिनने पर जप का फल इन्द्र ले लेते हैं।
मंत्र संख्या का निर्धारणः कई लोग ‘ॐ’ को ‘ओम’ के रूप में दो अक्षर मान लेते हैं और नमः को नमह के रूप में तीन अक्षर मान लेते हैं। वास्तव में ऐसा नहीं है। ‘ॐ’ एक अक्षर का है और ‘नमः’ दो अक्षर का है। इसी प्रकार कई लोग ‘ॐ हरि’ या ‘ॐ राम’ को केवल दो अक्षर मानते हैं जबकि ‘ॐ... ह... रि...’ इस प्रकार तीन अक्षर होते हैं। ऐसा ही ‘ॐ राम’ संदर्भ में भी समझना चाहिए। इस प्रकार संख्या-निर्धारण में सावधानी रखनी चाहिए।
  

अनुष्ठान कौन करे ?

मंत्रानुष्ठान
‘श्रीरामचरितमानस’ में आता है कि मंत्रजप भक्ति का पाँचवाँ सोपान है |

मंत्रजाप मम दृढ़ विश्वासा |
पंचम भक्ति यह बेद प्राकासा ||


    मंत्र एक ऐसा साधन है जो मानव की सोयी हुई चेतना को, सुषुप्त शक्तियों को जगाकर उसे महान बना देता है |

    जिस प्रकार टेलीफोन के डायल में 10 नम्बर होते हैं | यदि हमारे पास कोड व फोन नंबर सही हों तो डायल के इन्हीं 10 नम्बरों को ठीक से घुमाकर हम दुनिया के किसी कोने में स्थित इच्छित व्यक्ति से तुरंत बात कर सकते हैं | वैसे ही गुरु-प्रदत्त मंत्र को गुरु के निर्देशानुसार जप करके, अनुष्ठान करके हम विश्वेशवर से भी बात कर सकते हैं |
    मंत्र जपने की विधि, मंत्र के अक्षर, मंत्र का अर्थ, मंत्र-अनुष्ठान की विधि जानकर तदनुसार जप करने से साधक की योग्यताएँ विकसित होती हैं | वह महेश्वर से मुलाकात करने की योग्यता भी विकसित कर लेता है | किन्तु यदि वह मंत्र का अर्थ नहीं जानता या अनुष्ठान की विधि नहीं जानता या फिर लापरवाही करता है, मंत्र के गुंथन का उसे पता नहीं है तो फिर ‘राँग नंबर’ की तरह उसके जप के प्रभाव से उत्पन्न आध्यात्मिक शक्तियाँ बिखर जायेंगी तथा स्वयं उसको ही हानि पहुंचा सकती हैं | जैसे प्राचीन काल में ‘इन्द्र को मारनेवाला पुत्र पैदा हो’ इस संकल्प की सिद्धि के लिए दैत्यों द्वारा यज्ञ किया गया | लेकिन मंत्रोच्चारण करते समय संस्कृत में हृस्व और दीर्घ की गलती से ‘इन्द्र से मारनेवाला पुत्र पैदा हो’ - ऐसा बोल दिया गया तो वृत्रासुर पैदा हुआ, जो इन्द्र को नहीं मार पाया वरन् इन्द्र के हाथों मारा गया | अतः मंत्र और अनुष्ठान की विधि जानना आवश्यक है |

1.    अनुष्ठान कौन करे ?: गुरुप्रदत्त मंत्र का अनुष्ठान स्वयं करना सर्वोत्तम है | कहीं-कहीं अपनी धर्मपत्नी से भी अनुष्ठान कराने की आज्ञा है, किन्तु ऐसे प्रसंग में पत्नी पुत्रवती होनी चाहिए |
स्त्रियों को अनुष्ठान के उतने ही दिन आयोजित करने चाहिए जितने दिन उनके हाथ स्वच्छ हों | मासिक धर्म के समय में अनुष्ठान खण्डित हो जाता है |

2.    स्थान: जहाँ बैठकर जप करने से चित्त की ग्लानि मिटे और प्रसन्नता बढ़े अथवा जप में मन लग सके, ऐसे पवित्र तथा भयरहित स्थान में बैठकर ही अनुष्ठान करना चाहिए |
3.    दिशा: सामान्यतया पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके जप करना चाहिए | फिर भी अलग-अलग हेतुओं के लिए अलग-अलग दिशाओं की ओर मुख करके जप करने का विधान है |
‘श्रीगुरुगीता’ में आता है:
“उत्तर दिशा की ओर मुख करके जप करने से शांति, पूर्व दिशा की ओर वशीकरण, दक्षिण दिशा की ओर मारण सिद्ध होता है तथा पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जप करने से धन की प्राप्ति होती है | अग्नि कोण की तरफ मुख करके जप करने से आकर्षण, वायव्य कोण की तरफ शत्रु नाश, नैॠत्य कोण की तरफ दर्शन और ईशान कोण की तरफ मुख करके जप करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है | आसन बिना या दूसरे के आसन पर बैठकर किया गया जप फलता नहीं है | सिर पर कपड़ा रख कर भी जप नहीं करना चाहिए |

साधना-स्थान में दिशा का निर्णय:  जिस दिशा में सूर्योदय होता है वह है पूर्व दिशा | पूर्व के सामने वाली दिशा पश्चिम दिशा है | पूर्वाभिमुख खड़े होने पर बायें हाथ पर उत्तर दिशा और दाहिने हाथ पर दक्षिण दिशा पड़ती है | पूर्व और दक्षिण दिशा के बीच अग्निकोण, दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच नैॠत्य कोण, पश्चिम और उत्तर दिशा के बीच वायव्य कोण तथा पूर्व और उत्तर दिशा के बीच ईशान कोण होता है |
4.    आसन:  विद्युत के कुचालक (आवाहक) आसन पर व जिस योगासन पर सुखपूर्वक काफी देर तक स्थिर बैठा जा सके, ऐसे सुखासन, सिद्धासन या पद्मासन पर बैठकर जप करो | दीवार पर टेक लेकर जप न करो |
 

7/20/2014

उत्तम स्वास्थ्य के लिए महत्त्वपूर्ण बातें


 प्रतिदिन बच्चों को प्यार से जगायें व उन्हों बासी मुँह पानी पीने की आदत डालें |

 चाय की जगह ताजा दूध उबालें व गुनगुना होने पर बच्चों को दें | दुश से प्राप्त प्रोटीन्स व कैल्शियम शारीरिक विकास के लिए अति महत्त्वपूर्ण होते हैं |

 सुबह नाश्ते में तले हुए पदार्थों की जगह उबले चने, अंकुरित मूँग, मोठ व चने की चाट बनायें | इसमें हरा धनिया, खोपरा, टमाटर, हलका - सा नमक व जीरा डालें | ऊपर से नीबूं निचोड़कर बच्चों को दें | यह ‘विटामिन ई’ से भरपूर है, जो चेहरे की चमक बढाकर ऊर्जावान बनायेगा |

 सब्जियों का उपयोग करने से पहले उन्हें २ – ३ बार पानी से धो लें | छीलते समय पतला छिलका ही उतारें क्योंकि छिलके व गुदे के बीच की पतली परत ‘विटामिन बी’ से भरपूर होती है |

 सब्जियों को जरूरत से अधिक देर तक न पकायें, नहीं तो उनके पोषक तत्त्व नष्ट हो जायेंगे | पत्तेदार हरि सब्जियों से मिलनेवाले लौह (आयरन) तथा खनिज लवणों (मिनरल साँल्ट्स) की कमी को कैप्सूल व दवाईयों के रूप से पूर्ति करने से बेहतर है कि इनको अपने भोजन में शामिल करें |

 सप्ताह में १ – २ दिन पत्तेदार हरि सब्जियाँ जैसे पालक, मेथी, मूली के पत्ते, चौलाई आदि की सब्जी जरुर खायें | इस सब्जियों को छिलकेवाली दलों के साथ भी बना सकते हैं क्योंकि दालें प्रोटीन का एक बड़ा स्त्रोत हैं |

 चावल बनाते समय माँड न निकालें |

 चोकरयुक्त रोटी साधारण रोटी की तुलना में अधिक ऊर्जावान होती है | आता हमेशा बड़े छेदवाली छन्नी से ही छानें |

 दाल व सब्जी में मिठास लानी हो तो शक्कर की जगह गुड डालें क्योंकि गुड़ में ग्लुकोज, लौह-तत्त्व, कैल्सियम व केरोटिन होता है | यह खून की मात्रा बढ़ाने के साथ – साथ हड्डियों को भी मजबूत बनाता है |

जहाँ तक सम्भव हो सभी खट्टे फल कच्चे ही खायें व खिलायें क्योंकि आँवले को छोडकर सभी खट्टे फलों व सब्जियों का ‘विटामिन सी’ गर्म करने पर नष्ट हो जाता है |

 भोजन के साथ सलाद के रूप में ककड़ी, टमाटर, गाजर, मूली, पालक, चुकंदर, पत्ता गोभी आदि खाने की आदत डालें | ये आँतों की गति को नियमित रखकर रोगों की जड़ कब्जियत से बचायेंगे |

 दिनभर में डेढ़ से दो लीटर पानी पियें |

 बच्चों को चाँकलेट, बिस्कुट की जगह गुड़, मूँगफली तथा तिल की चिक्की बनाकर दें | गुड़ की मीठी व नमकीन पूरी बनाकर भी दे सकते है |

 जहाँ तक हो सके परिवार के सदस्य एक साथ बैठकर भोजन करें | कम-से-कम शाम को तो सभी एक साथ बैठकर भोजन कर ही सकते हैं | साथ में भोजन करने से पुरे परिवार में आपसी प्रेम व सौहार्द की वृद्धि तथा समय की बचत होती है |

उपरोक्त बातें भले ही सामान्य और छोटी-छोटी है लेकिन इन्हें अपनायें, ये बड़े काम की हैं |

7/19/2014

बेल पत्र के औषधीय प्रयोग ----


- बेल पत्र के सेवन से शरीर में आहार के पोषक तत्व अधिकाधिक रूप से अवशोषित होने लगते है |
- मन एकाग्र रहता है और ध्यान केन्द्रित करने में सहायता मिलती है |
- इसके सेवन से शारीरिक वृद्धि होती है |
- इसके पत्तों का काढा पीने से ह्रदय मज़बूत होता है |
- बारिश के दिनों में अक्सर आँख आ जाती है यानी कंजक्टिवाईटीस हो जाता है . बेल पत्रों का रस आँखों में डालने से ; लेप करने से लाभ होता है |
- इसके पत्तों के १० ग्राम रस में १ ग्रा. काली मिर्च और १ ग्रा. सेंधा नमक मिला कर सुबह दोपहर और शाम में लेने से अजीर्ण में लाभ होता है |
- बेल पत्र , धनिया और सौंफ सामान मात्रा में ले कर कूटकर चूर्ण बना ले , शाम को १० -२० ग्रा. चूर्ण को १०० ग्रा. पानी में भिगो कर रखे , सुबह छानकर पिए | सुबह भिगोकर शाम को ले, इससे प्रमेह और प्रदर में लाभ होता है | शरीर की अत्याधिक गर्मी दूर होती है |
- बरसात के मौसम में होने वाले सर्दी , खांसी और बुखार के लिए बेल पत्र के रस में शहद मिलाकर ले |
- बेल के पत्तें पीसकर गुड मिलाकर गोलियां बनाकर रखे. इसे लेने से विषम ज्वर में लाभ होता है |
- दमा या अस्थमा के लिए बेल पत्तों का काढा लाभकारी है|
- सूखे हुए बेल पत्र धुप के साथ जलाने से वातावरण शुद्ध होता है|
- पेट के कीड़ें नष्ट करने के लिए बेल पत्र का रस लें|
- एक चम्मच रस पिलाने से बच्चों के दस्त तुरंत रुक जाते है |
- संधिवात में बेल पत्र गर्म कर बाँधने से लाभ मिलता है |
- महिलाओं में अधिक मासिक स्त्राव और श्वेत प्रदर के लिए और पुरुषों में धातुस्त्राव हो रोकने के लिए बेल पत्र और जीरा पीसकर दूध के साथ पीना चाहिए|

6/18/2014

ब्रह्म मुहूर्त क्या है ? इसका वैज्ञानिक लाभ क्या है ?



ब्रह्म मुहूर्त का ही विशेष महत्व क्यों? रात्रि के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है।

“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”।
(ब्रह्ममुहूर्त की पुण्य का नाश करने वाली होती है।)

ब्रह्म मुहूर्त का विशेष महत्व बताने के पीछे हमारे विद्वानों की वैज्ञानिक सोच निहित थी। वैज्ञानिक शोधों से ज्ञात हुआ है कि ब्रह्म मुहुर्त में वायु मंडल प्रदूषण रहित होता है। इसी समय वायु मंडल में ऑक्सीजन (प्राण वायु) की मात्रा सबसे अधिक (41 प्रतिशत) होती है, जो फेफड़ों की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण होती है। शुद्ध वायु मिलने से मन, मस्तिष्क भी स्वस्थ रहता है।

आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।

ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक, पौराणिक व व्यावहारिक पहलुओं और लाभ को जानकर हर रोज इस शुभ घड़ी में जागना शुरू करें तो बेहतर नतीजे मिलेंगे।

आइये जाने ब्रह्ममुहूर्त का सही वक्त व खास फायदे –

धार्मिक महत्व - व्यावहारिक रूप से यह समय सुबह सूर्योदय से पहले चार या पांच बजे के बीच माना जाता है। किंतु शास्त्रों में साफ बताया गया है कि रात के आखिरी प्रहर का तीसरा हिस्सा या चार घड़ी तड़के ही ब्रह्ममुहूर्त होता है। मान्यता है कि इस वक्त जागकर इष्ट या भगवान की पूजा, ध्यान और पवित्र कर्म करना बहुत शुभ होता है। क्योंकि इस समय ज्ञान, विवेक, शांति, ताजगी, निरोग और सुंदर शरीर, सुख और ऊर्जा के रूप में ईश्वर कृपा बरसाते हैं। भगवान के स्मरण के बाद दही, घी, आईना, सफेद सरसों, बैल, फूलमाला के दर्शन भी इस काल में बहुत पुण्य देते हैं।

पौराणिक महत्व - वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूंढते हुए श्रीहनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।

व्यावहारिक महत्व - व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है। वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है। ऐसे में देव उपासना, ध्यान, योग, पूजा तन, मन और बुद्धि को पुष्ट करते हैं।

इस तरह युवा पीढ़ी शौक-मौज या आलस्य के कारण देर तक सोने के बजाय इस खास वक्त का फायदा उठाकर बेहतर सेहत, सुख, शांति और नतीजों को पा सकती हैं।

8/18/2013

वेद को इश्वर की वाणी इसलिए कहते हैं

वेद को इश्वर की वाणी इसलिए कहते हैं, क्यूँकी वो योग मे स्थित होकर लिखा गया है. योग मे सहित होने का मतलब है कोई ब्यक्ति अपनी आत्मा को जानने के बाद जब परमात्मा से संपर्क मे होता है, तो सारे ज्ञान को पा लेता है. क्यूँकी परमात्मा समस्त ज्ञान का स्रोत है. उस स्थिति मे वो ज्ञान इन्द्रियों द्वारा प्राप्त न होने की वजह से पूर्ण सत्य होता है और ईश्वरीय वाणी होता है जिसमे गलती की कोई गुन्जायिस नहीं होती है. कोई भी व्यक्ती इस तरह से इस ज्ञान को योग के माध्यम से समाधी मे स्थित होकर प्राप्त कर सकता है. गीता भी योग मे स्थित होकर कही गयी थी इसलिए वो भी वेद के बराबर ही मान्यता रखती है .....

चौरासी लाख योनिया


आपने अपने परिवार के बड़े-बुजुर्गों के मुख से ये तो अवश्य ही सुना होगा :
"84 लाख योनियों के पश्चात ये मनुष्य जन्म प्राप्त होता है अतः मनुष्य को जीवन में उचित कर्म करने चाहिए"

पदम् पुराण में हमें एक श्लोक मिलता है,इस प्रथ्वी पर एककोशिकीय, बहुकोशिकीय, थल चर, जल चर तथा नभ चर आदि कोटि के जिव मिलते है। इनकी न केवल संख्या अपितु वर्गीकरण की जानकारी भी हमें पद्म पुराण में मिलती है ।

जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यकः
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशवः, चतुर लक्षाणी मानवः 

j
जलज/ जलीय जिव/जलचर (Water based life forms) – 9 लाख (0.9 million)
स्थिर अर्थात पेड़ पोधे (Immobile implying plants and trees) – 20 लाख (2.0 million)
सरीसृप/कृमी/कीड़े-मकोड़े (Reptiles) – 11 लाख (1.1 million) 
पक्षी/नभचर (Birds) – 10 लाख 1.0 million
स्थलीय/थलचर (terrestrial animals) – 30 लाख (3.0 million)
मानवीय नस्ल के (human-like animals) – 4 लाख 0.4 million
कुल = 84 लाख । 

इस प्रकार हमें 7000 वर्ष पुराने मात्र एक ही श्लोक में न केवल पृथ्वी पर उपस्थित प्रजातियों की संख्या मिलती है वरन उनका वर्गीकरण भी मिलता है । 

आधुनिक विज्ञान का मत :

आधुनिक जीवविज्ञानी लगभग 13 लाख (1.3 million) पृथ्वी पर उपस्थित जीवों तथा प्रजातियों का नाम पता लगा चुके है तथा उनका ये भी कहना है की अभी भी हमारा आंकलन जारी है ऐसी लाखों प्रजातियाँ की खोज, नाम तथा अध्याय अभी शेष है जो धरती पर उपस्थित है । ये अनुमान के आधार पर प्रतिवर्ष लगभग 15000 नयी प्रजातियां सामने आ रही है । 
अभी तक लगभग 13 लाख की खोज की गई है ये लगभग पिछले 200 सालो की खोज है ।

10/27/2012

कुंभ के दौरान गंगा में नहीं गिरेगा अवजल


वाराणसी (एसएनबी)। महाकुंभ के दौरान गंगा का मूल प्रवाह कायम रहे और अवजल न गिरने पाये। इस मसले को लेकर गंगा सेवा अभियानम के संयोजक स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने शुक्रवार को लखनऊ में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात की। सीएम ने श्रद्धालुओं की आस्था का पूरा ख्याल रखने का आश्वासन दिया। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने बताया कि मुख्यमंत्री से हुई उनकी बातचीत अति सकारात्मक रही। उन्होंने मांग की कि कुम्भ के दौरान नदी में न्यूनतम प्रवाह 250 घनमीटर/सेकेंड, प्रमुख स्नान पवरे पर 300 घनमीटर/ सेकेंड करने की बात कही गयी है। इसके अलावा ईटीपी लगाये बगैर चल रहे उद्योगों को बंद करने तथा उद्योगों के शोधित जल का उपयोग सिंचाई के लिए करने को कहा। शोधित जल को गंगा में न मिलाया जाए। उन्होंने कहा कि सभी मांगों का निस्तारण अक्टूबर तक हर हाल में किये जाने के लिए कहा है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि अगले एक-दो दिन में वह अधिकारियों के साथ बैठक कर रणनीति तय कर लेंगे। नदी के प्रवाह व अवजल न गिरने की मानीटरिंग के सवाल पर सीएम ने कहा कि यह काम प्रदूषण नियंतण्रबोर्ड करेगा। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने गंगा सेवा अभियानम को भी साथ में मानीटरिंग करने की बात कही, जिस पर सीएम ने विचार विमर्श के बाद निर्णय लेने की बात कही। लखनऊ में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से वार्ता करते स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सीएम से मुलाकात कर मांग पत्र सौंपा हरसंभव प्रयास का सीएम ने किया वादा

4/16/2012

*आदित्य हृदयस्तोत्रम्‌*

*आदित्य हृदयस्तोत्रम्‌* ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् l रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ll दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्l l उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवानृषिः ll राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम् l येन सर्वानरीन्वत्स समरे विजयिष्यसि ll आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् l जयावहं जपेन्नित्यं अक्ष्य्यं परमं शिवम् ll सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम् l चिंताशोकप्रशमनं आयुर्वर्धनमुत्तमम् ll रश्मिमंतं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् l पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ll सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः l एष देवासुरगणाँल्लोकां पाति गभस्तिभिः ll एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः l महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमोह्यपां पतिः ll पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः l वायुर्वह्निः प्रजाप्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ll आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् l सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः ll हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् l तिमिरोन्मथनः शंभुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान् ll हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः l अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः ll व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुस्सामपारगः l घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः ll आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः l कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भवः ll नक्ष्त्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः l तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोऽस्तु ते ll नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः l ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ll जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः l नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ll नमः उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः l नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः ll ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे l भास्वते सर्वभक्षय रौद्राय वपुषे नमः ll तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने l कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ll तप्तचामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे l नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ll नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः l पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ll एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः l एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ll वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च l यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः ll एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च l कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ll पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् l एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ll अस्मिन्क्शणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि l एवमुक्त्वा तदाऽगस्त्यो जगाम च यथागतम् ll एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्तदा l धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ll आदित्यं प्रेक्श्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवां l त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ll रावणं प्रेक्श्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत् l सर्व यत्नेन महता वधे तस्य धृतोऽभवत् ll अथ रविरवदन्निरीक्श्य रामं l मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः ll निशिचरपतिसंक्शयं विदित्वा l सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ll